कविता

डरने लगा हूँ मैं

वो छोटा होकर  कितना बड़ा हो गया है,
बड़ा होकर भी बहुत छोटा हो गया हूँ मैं,
डरता तो नहीं हूं मैं किसी से मगर
उससे मिलकर डरने लगा हूँ मैं।
मिले थे हम पहली बार जब आमने सामने
दिया जो प्यार उसने उसी में खो गया हूँ,
उसके प्यार का जाने ये कैसा असर है
उसके सामने भीगी बिल्ली बन गया हूँ मैं।
वो अपना फ़र्ज़ निभाता चला आ रहा है
अपने फ़र्ज़ की राह में मैं रोड़ा हो गया हूँ,
उसने तो अपना दर्द पीना सीख लिया है,
उसके दर्द से अब मैंने रोना सीख लिया है।
बड़ा विश्वास था मुझे अपने जज्बातों पर
रोता तो हूँ मगर आँसू पीना सीख लिया है,
कुछ समझ आता नहीं क्या हो गया ऐसा
डरता भी नहीं हूं, फिर भी डरने लगा हूँ मैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

One thought on “डरने लगा हूँ मैं

  • दिव्या ग्रोवर

    बहुत बड़िया

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