कविता

मजदूरों का मान

माना कि हम मजदूर हैं
पर मेहनत से जी नहीं चुराते,
अपने काम में समर्पित रहते
अपने साथियों संग पसीना बहाते हैं,
सहयोग संग सद्भाव भी रखते हैं।
पसीना बहाकर भी खुश रहते हैं
जाति धर्म की भाषा नहीं बोलते
सर्वधर्म समभाव का पालन करते
अपना और अपने परिवार का
ईमानदारी से पेट पालते,
लालच नहीं करते, खुश रहते
ईश्वर की कृपा से जो कमाते हैं
उसी में खूब मस्त रहते हैं।
हमारा पसीना हमारा गहना है
इसकी खूश्बू हमारा आइना है,
इस आइने से हम दूर नहीं रही रह सकते
मजदूर हैं तो क्या हुआ?
बिना पसीना बहाये हम रह नहीं सकते।
लोग कुछ भी कहें हम दिल से नहीं लगाते
मेहनत से कभी जी नहीं चुराते
मजदूर हैं तो मजदूरों का मान नहीं घटाते।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921