बीते किस्से
अपनी जिंदगी के कुछ नायाब किस्से मैं सुनाती हूं
लोग कहते मुझे पागल , मैं तो कलम कि दीवानी हूं।।
बगिया के महकते फूल को कभी तोड़ा था तुमने
आज उस मुरझाए फूल से , मैं सबको मिलवाती हूं।।
मुरझाया फूल सूख के पात-पात बिखर था गया
उसी मुरझाए फूल के पात को मैं उठा के सजाती हूं।।
सजाए बैठी जो मैं सूखे फूल के हर एक पातों को
महक उठे सूखे पात जब जज़्बातों संग मैं बतियाती हूं।।
महक सूखे पातों कि अब ना पहले सी रह थी गयी
इन महकते सूखे पातों संग शब्द मैं अकसर गुनगुनाती हूं।।
एसा लगे अब बोल उठे हैं मेरे हर एक गुनगुनाते शब्द
इन्हीं गुनगुनाते शब्दों संग मैं नाता जोड़ हिम्मत पाती हूं।।
आज वीणा संग सब मिल के फिर से बजना हैं चाहते
वीणा के सुर ताल लय संग अब अकेले ही मैं मुस्काती हूं।।
— वीना आडवाणी तन्वी