कविता

मां सबकी अच्छी होती है

मां चाहे जैसी भी हो,
मां सबकी अच्छी होती है।
प्रेम के सागर मे डूबी ,
कलकल बहती नदियां जैसी होती है।।
नैनो से छलके अश्रु,
पल मे सब समझ जाती है।
आंचल में छुपा लेती,
पिपल के छांव जैसी होती है।।
अपनी इच्छाओं को मारती,
हमारी इच्छाएं पूरी करती है।
सदा देती रहती,ना कुछ लेती,
धैर्यवान धरा जैसी होती है।।
हमारा दर्द बांटती,
अपना दर्द छुपा लेती है।
विराट हदय वाली,
नील गगन जैसी होती है।।
गर मां न हो तो,
सब कुछ वीरान लगता है।
हवा सी सांसों में घुलती,
प्रकृति का उपहार जैसी होती है।।
मां से सब कुछ कह,
मन हल्का कर लेते हैं।
मां का मन सलोना,
मां बिल्कुल मां जैसी होती है।।
— प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रियंका त्रिपाठी

BSc(Maths),DCA,MCA,BEd शाह उर्फ पीपल गाँव IIIT Jhalwa प्रयागराज उत्तरप्रदेश