ग़ज़ल
आग ही आग हर तरफ देखा।
शाख का मूल का फरक देखा।
बूढ़े पत्तों को शाख रखते कब ,
खास रिश्तों पे भी बरफ देखा।
प्यार है आदमी में मतलब से,
देखा जो प्यार तो मसरफ देखा।
लिख रक्खा ललाट पर किस्मत ,
कैसे पढ़ता , न जब हरफ देखा।
वीज बोता है नफरतों का जो ,
धर्म से उसको बर-तरफ देखा।
•बर-तरफ= अलग
हरफ = अक्षर
मसरफ = मतलब ,उपयोगी।
© शिवनन्दन सिंह