ग़ज़ल
याद दिल से न कभी, माँ की, निकल पाती है
हर तरफ़ माँ की ही, तस्वीर नज़र आती है
बन्द आँखों में उभर आती है मूरत उसकी
उसके आँचल से, ख़ुदाई की महक आती है
अपनी ख़ातिर न किसी से कभी कुछ भी माँगा
उम्र बच्चों की हिफ़ाज़त में गुज़र जाती है
एक धड़का सा, लगा रहता है उसके दिल में
जाग कर नींद की राहों से, गुज़र जाती है
जब भी चिड़िया कोई, चूज़े को खिलाए दाना,
अपने बचपन की मुझे, याद बहुत आती है
क़र्ज़ मां का, न अदा होगा, कई जन्मों में
सींचकर अपने लहू से वो शजर, जाती है
माँ के दिल को, न कभी,’भान’, कोई ठेस लगे,
जब चली जाती है माँ, लौट के कब आती है!
— उदयभान पाण्डेय ‘भान’