मुक्तक
जब ख़यालों में कभी, माँ से लिपट जाता हूँ,
ऐसा लगता है कि मैं उम्र में घट जाता हूँ।
मेरे एहसास को, जन्नत का गुमां होता है,
जाके जब गोद में, बच्चे सा सिमट जाता हूँ।।
— उदयभान पाण्डेय ‘भान’
जब ख़यालों में कभी, माँ से लिपट जाता हूँ,
ऐसा लगता है कि मैं उम्र में घट जाता हूँ।
मेरे एहसास को, जन्नत का गुमां होता है,
जाके जब गोद में, बच्चे सा सिमट जाता हूँ।।
— उदयभान पाण्डेय ‘भान’