कविता

अंतहीन सफर

मिले फुर्सत तो आना घर पे
रखा है सारे वह लम्हे संजो के
जी लेंगे पर फिर वही पुराना दौर
कोयल की कूक शाखों पर लगी बौर|
एहसासों को फिर से लगाकर गले
आओ ना फिर से एक बार  जी ले
आना वही पीली साड़ी पहन के
बंधी है तुमसे अब भी  कुछ गिरहें|
चलो मिलकर खोले वह सारी गांठे
दूर करे पुरानी वो अनसुलझी बातें
गलतफहमियों  का हुआ था ऐसा असर
जुदा हो गए थे हमदोनों के  डगर|
दूर करे सारे शिकवे गिले
चलो फिर एक बार ऐसे मिले
रह न जाए अब कोई भी कसर
शुरू करें जीवन का अंत हीन सफर|
— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]