कविता

नाकाबिल

नाकाबिल
दिल है चटखा , पर नहीं है शिकवा
कि कह न दो, मुहब्बत है मेरी झूठी
कहाँ रह गयी हमारी वफा में कमी
जो कहा मुझे, तुम हो गए उस की

हमारे अरमानों की चिता सजाकर
कह रहे, हम सजाएँ तेरी महफिल
वाह रे खुदाई,लिखा कैसा तकाजा
संगदिल हो तुम, हैं हम नाकाबिल

जलाकर मेरे उम्मीदों का गुलशन
पूछते, बिखरा क्यों है नशेमन
कैसे कहूं, क्या कहूं, क्यों कहूं
भला लगता है बीच का चिलमन

अच्छी नहीं लगती हमें, अब तेरे
शहदी लफ्जों की हंसके नुमाईश
वो किसी और के लिए था शायद
पर कर लिया हम पर अजमाईश

चलो कोई बात नहीं, मेरे अजीज
यह हो गयी है रोज रोज की बात
कभी गिला नहीं करूंगा तुझसे
हो जाएं पूरे तेरे हर एक ख्वाब

तुम्हारे ख्वाब न तरसे कभी
न हो हैसियत का मोहताज
पूछो न अब मेरी कैफ़ियत
अब जुबां पर नहीं है जवाब

अंदर कुछ चटखा जरूर था
खुशी की वजह नहीं थी पास
पर अब मन है नहीं उदास
क्योंकि मैंने छोड़ दी है आस

परेशाँ था श्याम मेरी खुशी से
पूछा था, कब तक यूँ ही हंसोगे
मैंने मुस्कुराकर कहा प्यार से
जबतक तुम मेरे साथ रहोगे

जिंदगी बोली फिर मुस्कुराकर
खफा न हो इतना खुद से
खुद को अब संभाल पगले
खुद के गले, खुद से मिल ले

 

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार