गीतिका/ग़ज़ल

भरोसा

छोटा सा शब्द भरोसा,ये बड़ा चमकता है।
दुनियां के हर रिश्ते में, यही बसर करता है।
कारोबार मे रोज़गार में, नगद में ये उधार में,
हर शै से हर लम्हें से, हरसू यही गुज़रता है।
है नज़र में दिल में ये, जुबां के अल्फाज़ में,
फुरसत नहीं लम्हें की है, हर बात में रहता है ।
धुरी ये जहांन की, इस पर चले है कायनात,
सिक्का नहीं नाम इसका, फिर भी चलता है।
ये इश्क वालों का खुदा है रुह में धड़कन में ये
ये लबों की दुआओं में है हर बंदे का सज़दा है
ले ले के इसका नाम अब, करते हैं लोग घात,
हर रहगुज़र से ईसका अब, जनाज़ा उठता है।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है