कविता

कविता

तुम सागर हो गहरे प्रेम का
मेरे प्रियतम तुम प्रेम अथाह
तुम में डूब कर मैं तर जाऊं
है बस यही मेरी इक चाह
मैं प्रीत की चुनरी धानी ओढ़े
चाहूँ तुम्हारे नाम की पनाह
भर दो मांग तो निखर जाऊं
है बस यही मेरी इक चाह
मेरे दिन-रैन हुए तुम्हारे अब
कहीं लगे न किसी की निगाह
तुम पर तन-मन झर-झर जाऊं
है बस यही मेरी इक चाह
सबने देखा-समझा- जाना
हुए यूँ सभी हमारे गवाह
इस प्यार से जग भर जाऊं
है बस यही मेरी इक चाह
तुमसे है आस, तुमपे विश्वास
तुम कर रखोगे मुझसे निबाह
इस सोच में सँवर-सँवर जाऊँ
है बस यही मेरी इक चाह
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी