भाषा-साहित्य

मात्राओं का उपयोग

देवनागरी लिपि की विशेषता इसकी मात्राएँ हैं। इन्हीं मात्राओं में नागरी लिपि और हिन्दी भाषा की शक्ति छिपी हुई है। केवल 12 मात्राओं और 36 व्यंजनों में मानव वाणी के सभी सम्भव स्वर समाये हुए हैं। इसलिए किसी भी भाषा को कोई भी शब्द नागरी लिपि में अधिकतम शुद्धता के साथ लिखा जा सकता है।
यह इसकी विशेषता है कि कोई शब्द जिस तरह उच्चारित किया जाता है, ठीक उसी तरह लिखा भी जाता है। लिखने और बोलने में कहीं कोई विषमता है ही नहीं, जैसी कि अन्य अनेक लिपियों और भाषाओं में पायी जाती है। इसलिए इसमें किसी शब्द ही वर्तनी रटने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, यदि आपको उसका सही-सही उच्चारण करना आता हो।
फिर भी खेद का विषय है कि साधारण जन ही नहीं, वरन् बड़े-बड़े धुरंधर लेखक तक हिन्दी लिखते समय वर्तनी की विशेषतया मात्राओं की गलतियाँ करते हैं और इस बात पर उन्हें कोई खेद होता भी प्रतीत नहीं होता। मुख्य रूप से छोटे स्वर और बड़े स्वर की मात्रा लगाने में बहुत मनमानी होती है। किसी भी मात्रा को कहीं भी लगा देना कई रचनाकारों की गन्दी आदत है, जिसे सुधारने की बहुत आवश्यकता है।
यह घोर आश्चर्य की बात है कि अधिकतर रचनाकार ‘कि’ और ‘की’ शब्दों का अन्तर नहीं जानते और किसी का भी कहीं भी उपयोग या दुरुपयोग कर लेते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि ‘की’ अंग्रेजी शब्द ‘ऑफ’ का एक हिन्दी स्त्रीलिंग पर्याय है, जबकि ‘कि’ शब्द अंग्रेजी के ‘दैट’ शब्द का समानार्थी है।
इसी तरह बहुत से रचनाकार ओर-और, में-मैं, है-हैं, बहार-बाहर आदि शब्दों में अन्तर नहीं करते। ऐसे रचनाकारों को चाहिए कि वे एक हिन्दी शब्दकोश खरीद लें और कहीं भ्रम होने पर उसमें सही वर्तनी देखकर उपयोग में लायें। जब ‘हूँ’ की जगह ‘हुँ’, ‘ऊर्जा’ की जगह ‘उर्जा’ लिखा हुआ दिखायी देता है, तो पाठक अपना सिर पीटने के अलावा कुछ नहीं कर सकता।
इसलिए अपनी श्रेष्ठ भाषा और सर्वश्रेष्ठ लिपि के हित में हमें मात्राओं की गलतियाँ करने से बचना चाहिए, ताकि अपने लेखन को त्रुटिमुक्त बनाया जा सके।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]