कविता

जिंदगी कट रही है…

सुबह होती है शाम होती है
दिन आता है रात जाती है
धूप निकलती है
फिर अस्त होती है…
इस तरह ही…,
हफ्ता महीना वर्ष
आते हैं चले जाते हैं
इस तरह ही…,
दिन बीत रहा है
उम्र बढ़ रही है
मालूम नहीं मुझे…,
जिंदगी जी रहा हूं
या दिन काट रहा हूं
परंतु मैं…,
दिन बीत जाने को ही
जिंदगी चल रही है
फिर…,
उम्र बढ़ते रहने को ही
जिंदगी कट रही है
यही समझ रहा हूं…
— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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