नज़्म
पिछला पहर जब रात का हो,
और आँख में नींद ना आती हो,
तुम तनहा छत पर लेटे हो,
ये बात तुम्हें तड़पाती हो,
कुछ ख्वाब सजा के पलकों में,
तब चाँद से बातें कर लेना,
हम याद तुम्हें तो करते हैं,
तुम याद हमें भी कर लेना,
कभी हाथ में लेकर हाथ मेरा,
इन राहों पर तुम चलते थे,
इक पल भी जुदा ना होने की,
तुम कसमें खाया करते थे,
उन रस्मों का उन कसमों का,
इल्ज़ाम ना अपने सर लेना,
हम याद तुम्हें तो करते हैं,
तुम याद हमें भी कर लेना,
जब बैठे बैठे महफिल में,
नम आँख तुम्हारी हो जाए,
तुम बात कहीं पे करते हो,
दिल और कहीं पे खो जाए,
जज्बात के ऐसे आलम में,
मुस्कान लबों में भर लेना,
हम याद तुम्हें तो करते हैं,
तुम याद हमें भी कर लेना,
ऐसे भी दिन आ सकते हैं,
जब मेरी तेरी बात ना हो,
दीवार ज़माना बन जाए,
और अपनी मुलाकात ना हो,
झाँक के दिल के आईने में,
दीदार मेरा तुम कर लेना,
हम याद तुम्हें तो करते हैं,
तुम याद हमें भी कर लेना,
बारिश के मौसम में मुझको,
जब याद तुम्हारी आएगी,
दिल की उजड़ी हुई बस्ती पे,
ज्यों गम की घटा छा जाएगी,
शमा-ए-इश्क जलाकर तब,
तुम राहें रोशन कर लेना,
हम याद तुम्हें तो करते हैं,
तुम याद हमें भी कर लेना,
हम याद तुम्हें तो करते हैं,
तुम याद हमें भी कर लेना,
— भरत मल्होत्रा