गीत/नवगीत

पीर

है एक पीर ऐसी जो दिखायी जा नहीं सकती ,
ये एक टीस भी ऐसी
आखों से बहायी जा नहीं सकती
कहे कैसे कि तुम आवाज मेरी हो
है एक बात ऐसी जो बतायी जा नही सकती
जमाने भर के लोगों को सुनायी जा नहीं सकती
है एक गीत ऐसी जो गायी जा नहीं सकती
है एक प्रीत ये ऐसी निभाई जा नहीं सकती
कहे कैसे कि वापस लौट आओ तुम
है एक दूरी ये ऐसी मिटायी जा नहीं सकती
जमाने भर के लोगों को ……
है एक दर्द ऐसा ये दवा ली जा नही सकती
विरह की वेदना भी ये लबो पर लायी जा नहीं सकती
कहे कैसे कि तुम तो साज मेरे हो
बिना तुम इन धड़कनों मे झंकार लायी जा नहीं सकती
जमाने भर के लोगों को……
है एक ख्वाब ये ऐसा आखों मे बसायी जा नहीं सकी
इसे पूरा करने की जुगत लगाइ जा नहीं सकती
कहे कैसे कि तुम अम्बर ही मेरे हो
बिना तेरे ये धरती भी सजायी जा नहीं सकती
है एक पीर ऐसी जो दिखाई जा नहीं सकती
जमाने भर के लोगों को सुनाई जा नहीं सकती

वन्दना श्रीवास्तव

शिक्षिका व कवयित्री, जौनपुर-उत्तर प्रदेश M- 9161225525