गीत
ख्वाब बोए थे, ज़ख्म निकले हैं
दिल की खेती अजीब है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो
तुमको देखा जहाँ के मेले में
मिल ना पाया मगर अकेले में
तेरे बिन भीड़ में भी तनहा हूँ
कौन दिल के करीब है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो
मर्ज़ नासूर हो गया मेरा
मौत ही अब बनी दवा मेरी
हकीम साहेब भी उठ गए कह के
ये तो दिल का मरीज है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो
इश्क भी आज कल की दुनिया में
सोने चाँदी में तौला जाता है
ये भी नाकाम हुआ मेरी तरह
ये भी मुझसा गरीब है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो
दोस्त जब से खफा हुए मुझसे
दुश्मनों को बसाया है दिल में
कत्ल करने जो मेरा आया था
अब वो अपना मुरीद है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो
जल गया साथ तेरे दिल, लेकिन
जिस्म हरकत अभी भी करता है
देख कर मुझको लोग कहते हैं
ये तो जिंदा शहीद है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो
— भरत मल्होत्रा