गीत/नवगीत

गीत

ख्वाब बोए थे, ज़ख्म निकले हैं
दिल की खेती अजीब है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो

तुमको देखा जहाँ के मेले में
मिल ना पाया मगर अकेले में
तेरे बिन भीड़ में भी तनहा हूँ
कौन दिल के करीब है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो

मर्ज़ नासूर हो गया मेरा
मौत ही अब बनी दवा मेरी
हकीम साहेब भी उठ गए कह के
ये तो दिल का मरीज है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो

इश्क भी आज कल की दुनिया में
सोने चाँदी में तौला जाता है
ये भी नाकाम हुआ मेरी तरह
ये भी मुझसा गरीब है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो

दोस्त जब से खफा हुए मुझसे
दुश्मनों को बसाया है दिल में
कत्ल करने जो मेरा आया था
अब वो अपना मुरीद है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो

जल गया साथ तेरे दिल, लेकिन
जिस्म हरकत अभी भी करता है
देख कर मुझको लोग कहते हैं
ये तो जिंदा शहीद है यारो
प्यार में जीत कर भी हारा हूँ
अपना अपना नसीब है यारो

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]