लघुकथा

धन्यवाद

“आज पत्रकारिता दिवस है. हिंदी पत्रकारिता दिवस हो या पत्रकारिता दिवस बात तो एक ही है, पत्रकार सबका होता है, सब भाषाओं का होता है.” एक हिंदी पत्रकार सपना देख रहे थे. शायद रात को यही सोचते हुए सोए थे कि कल हिंदी पत्रकारिता दिवस है.
“सब लोग मुझे धन्यवाद दे रहे हैं.” पत्रकार ने आगे देखा.
“पत्रकारों की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. ये पत्रकार ही तो हैं, जो हमें देश-विदेश के समाचारों से अवगत कराते हैं, हमारा ज्ञानवर्धन करते हैं, मनोरंजन भी करते हैं और सावधान भी.” गीतांजलि श्री कह रही थीं.
“अंग्रेजी के साथ हिंदी समाचार पत्र ने भी तो मुझे समूचे विश्व से रू-ब-रू करवाया.” पत्रकार ने लिखा-
“गीतांजलि श्री की ‘Tomb of Sand’ ने जीता 2022 का अंतर्राष्ट्रीय बुकर प्राइज, कहा- मैंने कभी नहीं सोचा था…ऐसा कर सकती हूं.” गीतांजलि भावुक हो रही थीं.
“पत्रकारों को ह्रदयतल से धन्यवाद.”
“मेरी तरफ से भी पत्रकारों को हार्दिक धन्यवाद. उन्होंने ही तो मुझे प्रोत्साहित किया है.” आत्‍मसम्‍मान की मूरत निर्मला देवी ने कहा.
“आत्‍मसम्‍मान की मूरत निर्मला देवी… घरेलू हिंसा से जूझीं, हौसलों को थामा, अब चलाएंगी बसें——”
“मेरी तरफ से भी पत्रकारों को अभूत धन्यवाद. उन्होंने ही तो सारी दुनिया से मुझे मिलवाया है.” हादसे में हाथ खोकर भी पाव भाजी स्टॉल चलाने वाले मितेश गुप्ता ने कहा.
“हादसे में खोया एक हाथ, फिर भी बंदा चलाता है पाव भाजी स्टॉल, IAS ने शेयर की प्रेरणादायक कहानी”
“मेरी तरफ से भी धन्यवाद स्वीकार कीजिए.” महिला हॉकी टीम की गोलकीपर खुशबू खान ने कहा.
“Exclusive: जरा देख लो इंडिया… हॉकी के गोल रोकती अपनी यह ‘खुशबू’ रहती कहां है?”
“धन्यवाद पत्रकार महोदय.” कैरेबियाई क्रिकेटर मैकॉय ने कहा.
“घर पर मां बीमार, बैंगलोर को घुटनों पर लाया बेटा, राजस्थान को चैंपियन बनाने के बाद लौटेगा स्वदेश!”
इतनी सारी महान हस्तियों द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से पत्रकार महोदय सपने में अत्यंत हर्षित हो रहे थे, मुस्कुरा रहे थे और धन्यवाद के लिए धन्यवाद कह रहे थे.
“अजी, सुनते हो! ये किसको धन्यवाद दिया जा रहा है, मुझे तो एक बार भी कभी धन्यवाद नहीं कहा!” पत्नी ने कहा.
पत्रकार महोदय हड़बड़ाते हुए उठे. उनका सुंदर सपना टूट चुका था.
“अजी हम तो हैं ही सुनने के लिए.” वे आंखें मलते हुए कह रहे थे.
“पता है मैं किनका धन्यवाद कर रहा था. सपने में ही सही अनेक महान हस्तियां उनको कवर करने के लिए मुझे धन्यवाद दे रही थीं.” सम्भवतः वे अभी भी सपने की दुनिया में विचर रहे थे.
“फिर तुमको केवल मौखिक धन्यवाद करने से क्या होगा! तुम्हीं तो मेरी ऊर्जा हो! हर समय मुझे चौकन्ना रखती को, जैसे अभी रखा है, वरना कब की पत्रकारिता की छुट्टी हो गई होती!”
“अब जल्दी कीजिए पत्रकार महोदय! कहीं—-”
“कहीं सचमुच पत्रकारिता से छुट्टी न हो जाए!” कहते हुए पत्रकार महोदय “हिंदी पत्रकारिता दिवस” के मुख्य समारोह को कवर करने के लिए मन-ही-मन पत्नी को हार्दिक धन्यवाद देते हुए तैयार होने चले गए.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244