कविता

अपराध बोध

आजकल महसूस होता है
एक अजीब सा अपराधबोध,
पर अपराध का तो पता नहीं
शायद मैंने ऐसा कोई अपराध किया भी नहीं
न ही आप सब मुझे अपराधी मानते हैं।
फिर ये अपराध बोध कैसा?
शायद ये सजा है पूर्व जन्मों की
जब मैं बच गया रहा होऊंगा
अपने अपराध की सजा से
किसी षड्यंत्र, प्रभाव या सिफारिश से।
जो इस जन्म में जागृति होकर
मुझे आभास करा रहा है
पश्चाताप का दबाव बना रहा है।
मगर मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं
कि कौन और कैसा अपराध
कैसे करना होगा प्रायिश्चत,
ये तो सरासर अन्याय है।
चलो मान भी लूँ मैं खुद को अपराधी
पर सजा कौन तय करेगा,
सजा के बाद निर्दोष होने का
प्रमाणपत्र कौन देगा?
या सिर्फ ये मेरा वहम है
क्योंकि मैं जिसका अपराधी हूँ
आखिर वो कौन है?
या वो भी अपराध बोध से ग्रस्त है,
मैं अपराधी नहीं हूँ कहना चाहकर भी
शायद कह नहीं पा रहा है,
क्योंकि मेरा और उसका
तो कभी आमना सामना भी नहीं हुआ,
न ही हमारी जान पहचान, यारी दोस्ती है।
लगता है हम आप सब
इसी अपराध बोध का शिकार हैं,
अपने आप से लाचार हैं,
न तो हम अपराधी न ही आप पीड़ित हैं
फिर भी जीवन की ये कैसी विडम्बना है
हम सब अपराध बोध का शिकार हैं
जो अपना नहीं था मगर अब अपना है
बस उसी की पीड़ा की अनुभूति कर
अपराधबोध का शिकार हैं
शायद आज के परिदृश्य में
हम हों या आप, सबसे अधिक लाचार हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921