गीतिका
अपनी कहने की आई बारी है,
हर जगह खेल – कूद जारी है।
जी रहे लोग आज रंजिश में,
हाथ में उनके इक कटारी है।
कौन चाहे ख़ुशी ख़ुशी मरना,
ज़िंदगी बन गई दुधारी है।
जाने क्या हो रहा है दुनिया में,
सबको पूरी न जानकारी है।
जी रहे लोग आज ग़फलत में,
जाने कितनी चढ़ी ख़ुमारी है।
क्या जरूरत है सच छिपाने की,
छिप के बैठा कहीं मदारी है।
क्या सही, क्या ग़लत खुदा जाने,
वो बहस अब तलक तो जारी है।
हार जाना ही जीत है अपनी,
दिल तो अपना बड़ा जुआरी है।
इक मुहब्बत बची है सदियों से,
मन तो बस प्रेम का पुजारी हैं।
सारी दुनिया हुई अगर दुश्मन,
इसमें कुछ भूल तो हमारी है।
— नागेन्द्र नाथ गुप्ता