बाल कविता

मेरी साइकिल

मेरे पापा साइकिल लाए,
लाल रंग की साइकिल लाए,
चुस्त और तंदुरुस्त रहूं मैं,
इसीलिए हैं साइकिल लाए.
मम्मी कहतीं “ला दे धनिया”,
फट से मैं ले आता हूं,
इसी बहाने इसे चलाऊं,
शाबाशी भी पाता हूं.
टन-टन टन-टन घंटी बजाऊं,
राजू-बबलू दौड़े आते,
मुझे देख साइकिल को चलाते,
खुश होकर हैं ताली बजाते.
साइकिल पर मैं करूं सवारी,
मित्रों का भी मन ललचाए,
कहते “तेरे पापा अच्छे,
तेरे लिए साइकिल ले आए”.
कभी उन्हें पीछे बिठलाऊं,
थोड़े में वे खुश हो जाते,
बारी-बारी से साइकिल मेरी,
चलाकर वे भी आनंद पाते.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244