लघुकथा

विचार

अँधेरा गहराता जा रहा था और पाँवों के नीचे जो सीलन और कीचड़ था वह दरअस्ल खून-माँस था और चीखें और चीत्कारें जो थीं हमारे अपनों की थी लेकिन कोलाहल में तय नहीं होता था कि कौन मर रहा और कौन मार रहा है जबकि सबको अपनी-अपनी पड़ी थी और ऐसे हिंसक अँधेरे के बीच भी कुछ लोग ईनाम ओ मान की लिप्सा में फूलों और चाँद-सितारों की बातें कर रहे थे जबकि गुलाब की टहनी पर बेशुमार काँटे थे और चाँद-सितारे अपनी चमक खोते जा रहे थे लेकिन कमल नाल से बंधे कवि गण विरुदावली गा रहे थे राष्ट्रवाद की जो कि उस घुप्प अँधेरे में हथिया लिया गया था हत्यारों द्वारा और यदि कोई टटोल कर ढूँढना चाहता था रास्ता तो हाथ कलम कर दिये जाते थे और मैं हैरत में था कि इतने घने अँधेरे के बावज़ूद हत्यारों का निशाना बिल्कुल सही लगता था और ज़्यादातर लोग अपने बेवज़ह क़त्ल पर भी जय जयकार बोल रहे थे शासकों की जैसे कि बलिदान हो रहे थे वे न्याय के नाम पर जबकि वह सब कुछ घोर अन्याय था घृणास्पद…

“दर्द से फट रहा है सिर मेरा
वक़्त है बहुत बेरहम यारों”
–कैलाश मनहर

कैलाश मनहर

जन्म:- 02अप्रेल1954 शिक्षा:- एम.ए.(बी.एड) शिक्षा विभाग राजस्थान, विद्यालय शिक्षक के रूप में चालीस वर्ष कार्य करने के उपरांत सेवानिवृत्त। (1) कविता की सहयात्रा में (2) सूखी नदी (3) उदास आँखों में उम्मीद (4) अवसाद पक्ष (5) हर्फ़ दर हर्फ़ (6) अरे भानगढ़़ तथा अन्य कवितायें (7) मुरारी माहात्म्य एवं (8) मध्यरात्रि प्रलाप (सभी कविता संग्रह) तथा "मेरे सहचर : मेरे मित्र" (संस्मरणात्मक रेखाचित्र)प्रकाशित। प्रगतिशील लेखक संघ, राजस्थान द्वारा कन्हैया लाल सेठिया जन्म शताब्दी सम्मान, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, श्री डूँगरगढ़ द्वारा डॉ.नन्द लाल महर्षि सम्मान एवं कथा संस्था जोधपुर का नन्द चतुर्वेदी कविता सम्मान प्राप्त। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी प्रसारण । देश के अधिकतर पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित पता:- स्वामी मुहल्ला, मनोहरपुर, जयपुर (राजस्थान) मोबा.9460757408 ईमेल[email protected]