कविता

जिंदगी की कहानी

जिंदगी की कहानी

कब हो जाए खल्लास

नहीं इसका कुछ पता

चलते चलते

कब डगमगा कर

राहों में बिखर जाए

सुनने देखने वाले

बोल उठे यह क्या

कल तो मुलाकात हुई थी

गली के नुक्कड़ पर

हर प्रसाद पनवाड़ी की दुकान पर

कह रहे थे यार

आजकल तुम चुना ज्यादा लगा रहे हो

चुना जरा पान में कम लगाया करो

जिसे देखो चुना लगाने में लगा हुआ है

तुमसे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी

जवानी से आ रहे हैं पनवा खाने

तुम्हारी गुमटी पर

पहली बार जब तुमने खिलाया था पान

किबाब लगा कर

पत्ते पर रख कर

दो सुपाड़ी के टुकड़े

और थोड़ा सा चुना

जर्दा के साथ

 

 

 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020