जिंदगी एक जुमला
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेना,
किसको अच्छा लगता है !
‘आ बैल मुझे मार ‘ कह देना………,
किसको अच्छा लगता है !!
अपने ही पैरों पर……..!
आ बैल मुझे मार…….!!
कदम संम्भल संम्भल कर चल …,
वरना ठेस लग जाएगा !
नाचन न जाने और आंगन टेढ़ा कह देना,
किसको अच्छा लगता है !!
अपने ही पैरों पर……..!
आ बैल मुझे मार…….!!
जिसके के लिए अलग हुआ उनके ही,
आँखों मे पानी नही !
दिल देकर दर्द लेना और देना …..,
किसको अच्छा लगता है !!
अपने ही पैरों पर……..!
आ बैल मुझे मार……..!!
आसमान से गिरा और …………,
खजूर मे अटक गया !
बार बार ठोकर खा लेना…………,
किसको अच्छा लगता है !!
अपने ही पैरों पर………..!
आ बैल मुझे मार………..!!
जिस गली में मेहबूब का घर ना हो,
उस गली से गुजरना नही !
उस गली मे ही चक्कर काटना …..,
किसको अच्छा लगता है !!
अपने ही पैरों पर……….!
आ बैल मुझे मार……….!!
ओस चाटने से प्यास कहां ………….,
बुझता है भला !
प्यासे के पास कुंआ को आ जाना …,
किसको अच्छा लगता है !!
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेना,
किसको अच्छा लगता है !
‘आ बैल मुझे मार ‘ कह देना………,
किसको अच्छा लगता है !
— मनोज शाह ‘मानस’