जीवन का आईना
जकड रहे हैं सवाल मुझको
निगल गया ये जाल मुझको ।
ढल न सका समय के साथ
बस ये एक मलाल मुझको ॥
ऐ जिंदगी, लाड से कभी तो
उठा, हवा में उछाल मुझको ।
कल आईना उसकी मौत का
दिखा गया मेरा हाल मुझको ॥
प्रकृति से किया खिलवाड़
दिया उसने भी फाड़ मुझको।
प्लास्टिक से आहत प्रकृति ने
प्लास्टिक में ही लपेटा मुझको ।।
समेट रहा हूँ मैं हर संघर्ष को
किया जिसने बेहाल मुझको ।
ईश्वर ने छोटी-सी जेब देकर
क्यों दिया विशाल सब्र मुझको ।।
— गोपाल कौशल भोजवाल