धरती मां को, प्रकृति की संस्कृति को बचाने का जीवन आधार से ही मानव अपने सुख की सांसे गिन सकता है। इसलिए पर्यावरण को बचाना मानव का प्रथम कर्तव्य बनता है नहीं तो प्राकृतिक आपदाओं का खामियाजा भुगतने के लिए मानव को तैयार रहना होगा। प्रथम बार 5 जून से 16 जून तक(1972 में) संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में दुनिया के 119 देशों ने पर्यावरण की चिंता का चिंतन सम्मेलन में भाग लिया। प्रथमबार 5 जून 1973 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया तब से 5 जून को “पर्यावरण दिवस” के रूप में मनाया जाता है।भारत में 19 नवंबर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ।
आज मानव अपने स्वार्थ में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में एक शिकारी की भांति लगा हुआ है।आज अनेक रत्नों से जुड़ी हुई पृथ्वी का दोहन कर प्रकृति का नाश व अपने स्वयं के विनाश में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। वनों की कटाई। जल में, हवा में जहर घोल रहा है तो वातावरण में ध्वनि प्रदूषण कर रहा है। धरती में रासायनिक मिला रहा है। पहाड़ों को काट रहा है। जंगलों का जला रहा है। इन कारणों से वैश्विक समस्या का प्रतिदिन मौत को आमंत्रण दे रहा है। आज मानव एक चालाक जानवर बन गया है।अपने ही जीवन के साथ खूनी व तूफानी खेल खेल रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप भयानक विश्व महामारी ,अतिवृष्टि ,अनावृष्टि इस प्रकार महाविनाश का दौर शुरू हो चुका है। धरती पर बढ़ता ताप जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं । आज के पढ़ते प्रदूषण के कारण ओजोन परत को क्षति हो रही है जिसकी वजह से सूर्य से निकलने वाली हानिकारक किरणों से जीव जगत को क्षति हो रही है।
भारत में सबसे प्रदूषित शहर में प्रथम स्थान पर दिल्ली है,दूसरे स्थान पर मुंबई, तीसरे स्थान पर बेंगलुरु ,चौथे स्थान पर कोलकाता और पांचवे स्थान पर चेन्नई है।
राजस्थान में पेड़ों की रक्षा की एक अमर कहानी 1730 की है। राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव की रहने वाली अमृता देवी विश्नोई की है। जिन्होंने अपनी तीन बेटियों (आसु, रतनी एवं भागू)सहित अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। अमृता देवी के साथ में 363 लोगों ने बलिदान दिया था। प्रथम खेजड़ली दिवस 1978 में मनाया गया। राजस्थान सरकार द्वारा सर्वोच्च वानीकी पुरस्कार अमृता देवी 1994 में दिया गया। प्रतिवर्ष 8 अगस्त को खेजड़ी दिवस मनाया जाता है। जोधपुर के खेजड़ली गांव में विश्व का एकमात्र “वृक्ष मेला” लगता है। अमृता देवी का नारा था- “सिर साटे रूख मिले तो भी सस्तो जाण।”अर्थात् सिर कटवाने के बदले यदि एक पेड़ की रक्षा होती है तो भी सस्ता सौदा है यह समझना चाहिए।
पद्म विभूषण “पर्यावरण के गांधी” सुंदरलाल बहुगुणा एक महान पर्यावरण चिंतक थे जिन्होंने चिपको आंदोलन प्रारंभ किया था उन्होंने हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों के वनों को बचाने के लिए संघर्ष किया था।
21 मार्च विश्व वन दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 मार्च 2019 को घोषणा की । 22 मार्च जल दिवस के रूप में 1992 को संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की।23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है। 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। जिसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में पर्यावरण शिक्षक के रूप में की थी। 3 मई को विश्व सूर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।यह सारे दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि जन-जन को जागृत कर पर्यावरण को बचाना और धरती को सुरक्षा प्रदान करना है। विश्व के जन-जन को सजग करना है। धरती माता को बचाना होगा। जन-जन को पेड़ लगाना होगा। मिलकर सभी पेड़ लगाएं। धरती मां का श्रृंगार करें हम। अपने जीवन का आधार बनाएं। सुख का सार जीवन का आधार ,पेड़ लगाओ -पेड़ लगाओ। पर्यावरण बचाना होगा मानव समुदाय को जगाना होगा। धरती का संताप को हरना होगा। दृढ़ संकल्प लेना होगा ।गाने हैं यदि वसुधा के सद्भाव वाले गीत तो पर्यावरण के प्रहरी बनो हरदम अपने आप से। करो प्रकृति का सम्मान यदि तो मिलेगा मुफ्त में जीवनानंद।अपनी सांसों को बचाना होगा मिलकर पेड़ लगाना होगा जब हरियाली मुस्कुराए गी तभी दुनिया हंस पाएगी।
पर्यावरण दिवस पर हर व्यक्ति -बच्चा ,बूढ़ा और जवान मिलकर लगाए एक-एक पेड़। तभी हरियाली से धरती का श्रृंगार होगा।प्लास्टिक के प्रयोग से कम से कम प्रयोग करें पेड़ों को काटे नहीं बल्कि पेड़ों में बढ़ोतरी करें। वर्तमान में भारत में केवल 28 वृक्ष प्रति व्यक्ति हैं।
पेड़ों से मिलेगी प्राण वायु। आज के मानव को समझना होगा। कोरोना काल में क्या हाल हुआ मानव का?। एक- एक श्वास के लिए। पल-पल को झूंझता, अकूलाता मानव को कभी नहीं भूलना चाहिए। प्रकृति की संस्कृति को बचाना होगा। प्रकृति से प्यार करें तभी अपने जीवन को सफल बना सकें।अपने जीवन का यह आधार बाकी सब निराधार।
“प्रकृति के वरदान को क्यों भूल रहा इंसान।
प्रकृति के दोहन में मानव क्यों हुआ नादान।
जंगल में मंगल ढूंढता था
उसी ने आज बेड़ा गर्त किया।
प्रकृति ने अमृत दिया
पर आज के मानव ने ,
पर्यावरण में क्यों जहर घोल दिया?”
— डॉ. कान्ति लाल यादव