आज खिलखिलाती हूँ
बिखेर मुस्कानें अपनी
होंठ भी हँस पड़ते हैं
आज जब उदास होती हूँ
बिखर जाती है नमी पलकों के कोरों पर
जब मिलती हूँ किसी से
रह जाती है छाप उसके दिल पर हमारी
नाम मानो लिख जाता हो उसके
दिल और दिमाग पर
इस तरह हो अपना या पराया
देता स्नेह, प्यार, सम्मान, अपनापन
ये ही तो है पहचान मेरी
जो रूठ भी जाते या हो
जाती कोई गलतफहमी
वो भी ज़्यादा देर रह नहीं
पाते दूर जब सुलझ जाती
गूथि आशंकाओं की
उम्र के कितने ही पड़ाव पार
हुए यूँ देख मौसम कई
मिलन, जुदाई, विदाई, पाने और खोने के
पर नहीं कुछ बदला तो दिल मेरा,
न स्वभाव, न कोमलता, न सहनशीलता
आज पड़ते हो मुझे रचनाओं में
या मिलते हो प्रत्यक्ष
जब रुक जाएंगी साँसे
थम जाएगी ज़िन्दगी
तब तुम्हारी यादों में, दिलों में
एक दिन कहानी बन जाऊँगी
जिसे चाह कर भी भूला न पाओगे कभी भी
सदा रहूँगी मुस्कुराती तुम्हारे जहन
में बनकर मीठी कसक।।
— मीनाक्षी सुकुमारन