आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
एक एक पेड़ लगा के हजारों जिंदगी बचाते हैं
इस धरती की चोला फिर हरा भरा बनाते हैं
आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
बेवजह कटने से पेड़ों को बचाते हैं
लड़ते हैं हम अपने अपने मजहब के लिए
सबसे पहले हम अपना मानव धर्म निभाते हैं
प्राणवायु देती है हमको , देती है ठंडी हवा
मर जाने पर समा लेती है अपनी गोद मे
तो जीवन बचाने की बन जाती है दवा
आओ इस प्रकृति के सामने हम सब शीश झुकाते हैं
आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
यही तो हमारी जिंदगी का असली धन है
ये ना हो तो क्या हमारा सम्भव जीवन है
अपनो की तरह ये हमसे रिश्ता निभाते हैं
आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
झेला कोरोना को हमने जब प्रकृति को सताया है
फेका कचरा नदियों में, तो कही जंगल को आग लगाया है
जल थल आकाश को प्रदूषित होने से बचाते हैं
मांगते है माफी गलतियों की, प्रकृति को फिर मनाते हैं
आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
आओ मिलकर वसुंधरा सजाते हैं
— जुबेर जिलानी