लघुकथा

प्यार

कहा जाता है- “प्यार अंधा होता है.”
क्या सचमुच “प्यार अंधा होता है?”
“प्यार खुली आंखों वाला भी होता है.” यह कहना-मानना है मैकॉली मर्ची का.
“मैं बेघर-बेचारा मॉल के बाहर बैठा था.” मर्ची ने बताना शुरु किया.
“एक महिला शॉपिंग करने आई, न जाने फटे-पुराने कपड़े पहने, बहुत बढ़ी हुई दाढ़ी के होते हुए भी उसने मुझे आंखों में बसा लिया. प्यार का यह पहला एहसास महिला की तरफ से था.”
“हर आते-जाते शख्स की तरह उस महिला को मैंने भी देखा था, वह भी मेरे मन में बस गई थी.” मर्ची को अभी भी वह मंजर याद है.
“यों तो वह शॉपिंग कर रही थी, पर उसके मन में मेरी मूरत बसी हुई थी.”
“वह शॉपिंग करके बाहर आई, उसे लदा-फदा देखकर मैंने उसका सामान उठाया और कार तक पहुंचाया. हम दोनों की खुली आंखें अब भी प्यार का तराना गा रही थीं.”
“कुछ खाओगे! उसने पूछा था और मेरे जवाब देने से पहले ही उसने मुझे अपने पीछे आने को कहा. वह मुझे एक होटल में ले आई थी. मेरे लिए उसने खाना मंगवाया और खुद के लिए कॉफी. खा मैं रहा था, आंखें उसकी तृप्त हो रही थीं.” मर्ची कुछ ज्यादा ही भावुक हो चला था.
”इसी बीच उसने मेरा पता-ठिकाना, घर-बार पूछना चाहा. मैं बेघर-बेचारा था, क्या बोलता!” उसकी आंखें समझ गईं.
“उसने मेरा हुलिया ठीक करवाया और मुझे लेकर अनाथाश्रम की ओर चल पड़ी. चलते-चलते अचानक उसने गाड़ी रोक ली और “मेरे घर चलोगे?” पूछकर गाड़ी मोड़ ली.” मर्ची भावविभोर हो चला था.
“फिर तो इतने बड़े घर में रहने वाले हम दो प्राणी! उसको काम करते देखकर मैं भी कुछ-कुछ सीखने लगा. उसने मुझे ड्राइविंग भी सिखाई. अब कभी वह ड्राइविंग व्हील पर और कभी मैं और हवा से बातें करते हम दोनों.” मर्ची आनंद की लहरों में खो-सा गया था.
“मुझसे शादी करोगे?” उसका यह प्रश्न सुनकर मैं हमेशा की तरह खामोश रहा.
“शायद मेरी खामोशी मुखर हो गई थी! उसी समय हमने शादी की वेशभूषा खरीदी, चेंजिंग रूम में तैयार हुए और थोड़ी देर बाद कोर्ट से शादी करके वापिस लौट रहे थे.” उसकी खुली आंखों में खुली आंखों वाला प्यार झलक रहा था.
तभी पार्क से चिड़ियाओं के जोड़े की चहचहाहट सुनाई दे गई-
“प्यार एक मधुर भावना है,
प्यार में न लेने न देने की कामना है,
मन में मुहब्बत वाला
सबसे ज्यादा खूबसूरत तब लगता है,
जब उसमें न कोई विकार न वासना है.”
दोनों को उनकी चहचहाहट में यही सुनाई दे रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “प्यार

  • *लीला तिवानी

    जिसे मैं प्यार करता हूं, मैं उसे मुक्त करना चाहता हूं, यहां तक कि मुझसे भी।

  • *लीला तिवानी

    प्यार सभी को कभी न कभी किसी वस्तु या किसी व्यक्ति से हो जाता है. हमें सभी लोगो से प्यार पूर्वक व्यवहार करना चाहिए. हमें सभी को प्यार पूर्वक जीवन जीने का अवसर देना चाहिए.

  • *लीला तिवानी

    जहाँ कहीं भी तुम मेरे साथ हो, वही मेरी पसंदीदा जगह है।

  • *लीला तिवानी

    प्यार एक खूबसूरत एहसास है। जिसको सच्चा प्यार मिल गया हो वो इस दुनिया का सबसे ख़ुशनसीब व्यक्ति है।

  • *लीला तिवानी

    मानवता एक महासागर की तरह है. मानवता सबसे प्रेम करना सिखाती है. जब मानवता और प्रेम एक साथ हों, तो प्यार (लघुकथा) का सृजन होता है.

Comments are closed.