विश्वास बनाम चमत्कार!
हमेशा से सकारात्मकता का दुशाला ओढ़े सिम्मी को न जाने कैसे नकारात्मकता की चादर ने मात दे दी. नतीजे में मिला मुफ्त उपहार के रूप में अवसाद!
अवसाद के कारण उसे महीनों अस्पताल में काटने पड़े थे. उसे लगता था, कि जिंदगी में कोई सार नहीं है. इधर उसकी मायूसी बढ़ती जाती, उधर अवसाद की दवा का डोज़ बढ़ता जाता. उफ्फ, पूरे बदन में अजीब-सी झुरझुरी के कारण कितनी मुश्किल से कटती थीं उसकी रातें. नींद तो जैसे रूठ ही गई थी! पूरी रात करवटें बदलते वह भगवान से अपने पास बुलाने की प्रार्थना करती. पर उसके पास अपनी मर्जी कब चली है!
उसकी रूम पार्टनर मार्गो का भी कमोबेश यही हाल था. रात को इतनी जोर से चिल्लाती, कि सिम्मी डर जाती और बेल बजाकर नर्स को बुलाती. तब तक सब पूर्ववत हो जाता. सुबह उठकर मार्गो से पूछो तो कहती, मुझे कुछ नहीं पता. मार्गो को भी बेहतर समझकर घर भेज दिया गया. स्टैला भी गई, हेज़ल भी जाने वाली थी. सिम्मी को लगा कि उसे भी जल्दी ही ठीक करके भेजा जाएगा. पर कैसे! अभी तो उसका डोज़ ही बढ़ाया जा रहा है. वह अपनी तबियत की रिपोर्टिंग जो नकारात्मक करती थी. रात की तकलीफ! उफ्फ इससे तो निजात पानी ही होगी.
अब उसे नींद नहीं भी आती तो नर्स के पूछने पर वह कहती “नींद बहुत अच्छी आई थी.”
सचमुच नींद बहुत अच्छी आने भी लग गई.
“शायद भगवान की यही मर्जी है, उसको तो सहर्ष स्वीकार करना ही होगा.”
उसने अपने इष्टदेव की एक विशेष तस्वीर को अपना साथी बना लिया. सोते-जगते वही छवि उसके तन-मन को ऊर्जामय बनाए रखती थी और समीचीन दिग्दर्शन भी करती थी.
“जीवन बहुत खूबसूरत है. Past has passed, future we don’t know, present is gift, enjoy the gift.” उसने अगली मीटिंग में डॉक्टर्स से कहा.
डॉक्टर्स अपनी सफलता पर प्रसन्न थे और हैरान भी! उसका नींद का डोज़ भी कम कर दिया गया और अवसाद का भी.
“मरीज का हाल अच्छा है.” डॉक्टर्स ने उसको घर भेजने की तैयारी शुरु कर दी. एक ही दिन में सब कागज-पत्र और दवाइयां तैयार हो गईं और उसे घर भेज दिया गया.
इष्टदेव की उस विशेष तस्वीर से बराबर उसे ऊर्जा मिलती रहती थी.
उसकी तबियत में वांछित सुधार आते देखकर घरवाले संतुष्ट थे. यह इष्टदेव पर विश्वास का परिणाम था या कोई ग़ैबी चमत्कार था, न वह जान नहीं पाई, न डॉक्टर्स.