कबीर मानव समाज के एक ऐसे वीर योद्धा हैं जो बुराइयों पर बहादुरी से लड़कर जीतने की अदम्य शक्ति और सामर्थ्य रखने वाले सद्गुरु है।कबीर एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे।वे युग पुरुष थे। युग दृष्टा थे।आत्मज्ञानी, साहसी एवं फक्कड़ थे। वे मानव धर्म के मसीहा थे। सत्य,अहिंसा और मानवतावाद के पुजारी। जाति, अधर्म , ढोंग, बाह्य आडंबर, अनाचार ,अंधविश्वास,तथा दूषित परंपराओं के विरोधी थे। कबीर अपने समय के एक क्रांतिकारी संत, गुरु थे। वे मानव मात्र का कल्याण चाहने वाले युग प्रवर्तक थे। उन्होंने मानव समाज की बुराइयों का तीव्र विरोध अपनी वाणी ,उपदेशों व प्रवचनों के माध्यम से करने की हिम्मत उनमें लाजवाब थी। उन्होंने धर्म ,समाज में फैली बुराइयों को अपनी ज्ञानवाणी से जन-जन को मार्ग दिखाने का पावन कार्य किया। कबीर की ज्ञानवाणी सधुक्कडी भाषा में है। कबीर अनपढ़ थे किंतु अत्यंत प्रतिभाशाली थे। वह कहते हैं-
“मसी कागज छूयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ। चारिक जुग को महातम, मुखहिं जनाई बात।।”
उनके ज्ञान की खुशबू हर युग में फैली हुई है। वे आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने अपने युग में। हर युग में उनके ज्ञान की आवश्यकता बढ़ती जाती है। आज की पढ़ी-लिखी पीढ़ी भी उनके ज्ञान को समझ नहीं पाती है उनकी एक -एक साखी उन्हें सोचने, समझने को विवश कर देती है। उनका ज्ञान वास्तव में अद्भुत है । समस्त मानव के लिए कल्याणकारी तथा उपयोगी है। उनके शिष्यों ने उनकी वाणीयों का ‘बीजक’ नाम से संग्रह किया है। जिसके मुख्य तीन भाग हैं -साखी, सबद और रेमैनी है। कबीर ने मुस्लिम और हिंदू धर्म की बुराइयों का जमकर विरोध किया था। दोनों ही धर्मों में आज भी ज्यों की त्यों बुराइयों विद्यमान है। कबीर ने अपनी उलट बांसी वाणी में बहुत कुछ कहने की हिम्मत दिखाई है। उनके पदों में रहस्यवाद का बेजोड़ प्रयोग हुआ है। उनके ज्ञान में तार्किकता है। उनका ज्ञान सत्य की मशाल लिए हुए अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन में एक प्रकाश पर्व का कार्य करता है। वे ज्ञानी ही नहीं बल्कि महान योगी थे। उनके ज्ञान वाणी में सहेज देखने को मिलता है। उनके ज्ञान रूपी साखियां गागर में सागर भरने का काम करती है। आज भी उनकी साखियों को गांव का अनपढ़ से लेकर ज्ञानी से ज्ञानी भी प्रयोग करता है। कबीर एक जनवादी कवि एवं संत हैं। सार्थकता यह है कि उनकी इन ज्ञान रूपी वाणी को कितना आत्मसात किया जाए! आज के भटके हुए इंसान को इनका ज्ञान वही संदेश देता है जो युगों पहले उन्होंने जन-जन तक पहुंचाया था। प्रेम का ,अहिंसा का ,समानता का ,मानवता का, दया का ,सत्य का , मानवधर्म का, इंसानियत का जो संदेश उन्होंने अपनी वाणी के माध्यम से दिया था , जन-जन तक पहुंचाया था वह आज भी उतना ही सार्थकता लिए हुए हैं। कबीर एकेश्वरवादी थे। वे मूर्ति -पूजा, अवतारवाद, व्रत, रोजा में विश्वास नहीं रखते थे। कबीर का ज्ञान नाथ पंथ और सूफीवाद से प्रभावित है। आज कबीर के ज्ञान को सामान्य इंसान भी सीख रहा है तो विश्वविद्यालय में भी कबीर को पढ़ाया जा रहा है। किंतु सच्चाई यह है की उनके ज्ञान को वास्तविक रूप से और व्यवहारिक रूप से आत्मसात करने की है। जो एक बड़ा मुश्किल काम है। कबीर इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले गुरु, संत एवं सुधारक है। कबीर की वाणी इंसानियत को गले लगाती है तो झूठ ,कपटी, ढोंगी, बेईमानों पर करारा चोट भी करती है। उनका ज्ञान मरहम भी है और घाव भी है। उनका ज्ञान, ज्ञान का दरिया है। मानव को घड़कर महामानव बनाने का काम करता है। उनकी वाणी मनुष्य को एक सच्चा इंसान बनाती है। एक आदर्श परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण करती हुई एक सुंदर दुनिया बनाने का काम करती है। आज कबीर की वाणी को मधुर उच्चारण के बजाय सद्आचरण में उतारने की आवश्यकता है।कबीर के ज्ञान को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। कबीर ने मानव मात्र की भलाई हेतु हर बुराई रूपी रोग के इलाज के लिए अपने भजनों, साखियों, पदों, और उपदेशों के माध्यम से ज्ञान रूपी मरम का काम किया है।
— डॉ. कान्ति लाल यादव