कहानी

कहानी – मर गया राक्षस !

’तुमने सुना क्या ?’ दोस्त ने मोबाईल पर पूछा ’क्या ?’ मैंने कहा तो वह बोला ’ अरे, यार तुम को सचमुच नहीं मालुम है क्या ?’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था । फिर वही बोला ’ राक्षस मर गया !’ ’अरे, कब ? कैसे ? क्या हुआ था ? भला चंगा तो था ?’ मैंने कई प्रश्न एक साथ पूछ लिए । दोस्त ने कहा ’ लम्बी, कहानी है फिर जब मिलेंगे तब बताउंगा ’ और उसने कनेक्शन काट दिया ।
छः माह पहले की बात है स्थानीय विधायक रामकिशन ने एक व्यक्ति को मेरे पास भेजा और मोबाईल पर कहा ’ इस रोहित सिंह का बीपीएल कार्ड बना दूॅ ।’ दो-चार प्रश्न पूछते ही पता लग गया की रोहित सिंह अमीर है इनकम टेक्स पेयर है मैंने मना कर दिया । दूसरे दिन आफिस पहुॅचा तो स्थानान्तरण और रिलिविंग लेटर टेबल पर रखा था । मैने भीलवाडा मे जोईन किया । वहां रहने के लिए कमरा-किचन खोज लिया और वही राक्षस से परिचय हुआ ।
पता नहीं क्यों लोग उसे राक्षस कहते थे । सीधा, सहज, सरल स्वभाव का मिलनसार व्यक्ति था । मेरे रूम के सामने वाले घर का मालिक था । सुबह उठता तो देखता राक्षस तगारा, कन्नी लेकर सडक,नाली की मरम्मत मे लगा है । रेती, सिमेंट आदि उसनें स्थाई रूप से घर मे रख रखे थे और बगैर शिकाय के नगर परिषद की सडक, नाली की मरम्मत करता था । मुझे देखकर बगैर संकोच, शर्म के पूछता ’ और कैसे चल रहा है ?’ मेरे संक्षिप्त उत्तर पर वह मुस्करा देता । कुछ देर बाद वह झाडू लेकर सडक की सफाई करता और कचरा, पत्ते, पालीथिन थैलियां इकठ्ठी करके जला देता । इसके बाद पाईप लाता और नल से लगाकर सडक को नहला देता कुछ ही देर मे उसके घर के आगे की सडक चमचमा जाती ।
उसके बाद वह अपने घर के भीतर सफाई करता झाडू लगाता, पांेछा लगता, शायद घर के भीतर दुसरे भी कई काम करता होगा । कुछ देर बाद मैं देखता की वह अपनी दुकान खोले बैठा है आते-जातें लोगों से बातें कर रहा है । मैं दिख जाता तो वही प्रश्न पूछता ’ और कैसे चल रहा है ?’ बस ठीक-ठीका है सुनकर वह मुस्करा देता ।
यह सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा था यह कहे की उसकी जीवन शैली थी उसके हिसाब से जीवन सहज गति से बढ रहा था उसकी पत्नी, बच्चें भी उसके इस अंदाज के आदि थे कुछ भी नहीं कहते थे । वरना दूसरा कोई परिवार होता तो उसको यह सब करने से रोकता । इज्जत खराब करने का ताना देता ।
एक दिन दोपहर मे मैं रूम पर आया तो देखा राक्षस अपनी बाईक के कलपूर्जे खोलकर बैठा है, दुरूस्त कर रहा है । ’और कैसे चल रहा है ?’ पुछकर वही बोला ’कई दिनों से बाईक खराब है सोचा ठीक कर लुॅ ।’ अच्छा कहकर मैं कमरे मे आ गया तो पास के रूम मे रहने वाला दोस्त मुस्करा रहा था वह बोला ’ रोजाना बाईक खोलकर बैठ जाता है और यही कहता है सब को ’सोचा ठीक कर लु । ’
एक दिन फुर्सत मे था मैं तो पास के रूम मे रहने वाला दोस्त आ गया । बात चली कहें निंदा चली । पता चला की राक्षस पहले ऐसा नहीं था । हर किसी से झगड पडता था, मारपीट करता, गाली-गलौच करता यहा तक की औरतों और बच्चों को भी डराता । खुद के घरवालों से तो आए दिन मारपीट करता था यहा तक की अपने माता-पिता को आए दिन घर से निकाल देता ,खाने को नहीं देता था, बेटो को खर्च के लिए फुटी कौडी भी नहीं देता था । खुद की दुकान पर कम ही बैठता । दुकान पर भुलेभटके कोई ग्राहक आ जाता तो उनसे अकडकर बोलता ,घटिया माल अधिक दाम पर देता कोई ग्राहक शिकायत करने आता तो गालियां देता उसके इसी स्वभाव के कारण लोग उसे राक्षस कहने लगे यहा तक की परिवार के लोग भी राक्षस ही कहते थे ।
दोस्त ने ही बताया की पता नहीं कैसे यह नम्र हो गया है और सुधर गया है फिर भी उसकी पहचान कायम है । मैंने पूछा इसका असली नाम क्या है ? मित्र हंस दिया ओर बोला ’पता नहीं , शायद उसे भी याद नहीं होगा और मैंने तो असली नाम कभी सुना नहीं ।’
इस बीच चुनाव आ गए मेरा स्थानान्तरण करवाने वाले एमएलए रामकिशन भारी अन्तर से चुनाव हार गए । हारना ही था । उसने सरकारी-कर्मचारी अधिकारियों को अपना नौकर मान लिया था दबाव डालकर खूब गलत-सलत काम करवाए थे ओर सारा नारियल अकेले ही खा जाता था किसी को हिस्सा नहीं देता था । उसने आम हित का काम भी बगैर लेन-देन के नहीं किया था । लोग जन समस्याएं लेकर जाते तो घंटो इन्तजार करवाता कभी पूजा मे होता तो कभी बाथरूम मे ।
उसके बेटों ने भी अपराध के रिकार्ड बनाए थे । गंुडार्गिदी करते थे मारपीट, हफता वसुली करते थे । शराब पीकर वाहन चलाना, दुर्घटना होना और डराना, धमकाना आम बात थी । होटलों मे खाते तो रूपए नहीं देते थे । किसी की भी कार उठा लेते साल – छः महिने चलाते फिर देते । पुलिस भी कोई कार्यवाही नहीं करती थी क्योकि नेताजी के खास लोगों मे थे । हालात यह थे की मिडिया वाले, विपक्षी नेता ,आम आदमी इनसे बच कर रहते थे । लोकतंत्र मे तो नेता पांच साल की ही उम्र का होता है फिर भी राजा की तरह व्यवहार करता है । बाद में तो कोई पूछता भी नहीं । चपरासी तक को पूर्व एमएलए, मंत्री सलाम करते थे । तो नए एमएलए ने कुछ कम लेकर मेरा स्थानान्तरण मेरे ही जिले मे करवा दिया ओर उसी सीट पर बिठाया जहां पूर्व में कार्यरत था ।
जब राक्षस को पता लगा की मेरा स्थानान्तरण हो गया है और जाने वाला हॅू तो एक दिन कमरे मे आ गया । बोला ’और कैसे चल रहा है ?’ मैंने उसको बैठने को कहा तो संकोच करने लगा । बातचीत चली उसने अपनी व्यथा बताई । मॉ-बाप की इकलौती संतान है खूब लाड-प्यार से पाला जिससे वह उद्दंड हो गया उसकी गलतियों को भ मॉ-बाप ढक देते और शिकायत करने वाले को ही बुरा-भला कहते । घर मे रूपयों की कोई कमी नहीं थी । बडा हुआ तो उसके व्यवहार से तंग आकर मॉ-पिताजी ने शादी करवा दी की सुधर जाएगा । गरीब परिवार की कुशाग्र पत्नी ने उसे सुधारने के लिए टोका-टाकी शुरू की,समझाना शुरू किया तो उसने मारपीट करनी शुरूकर दी । उसने बताया की उसके कर्कश स्वभाव का असर बच्चों पर भी हुआ । फिर एक दिन दुर्घटना मे वह गंभीर रूप से घायल हो गया । 6 माह तक बिस्तर मे रहा सेवा कौन करता ? पत्नी भी औपचारिकता ही करती । गंदगी, बदबू मे पडा रहता । पानी को तरसता तब समझ मे आया की परिवार क्या होता है ? उनकी इज्जत करनी होती है लेकिन रिश्तेदार, पडौसी, मित्रों से अपने व्यवहार के कारण राक्षस के नाम से पहचाना जाने लगा था ।
उसने बताया ठीक होने के बाद दुकान सम्भालने गया तो पता लगा की सबकुछ बेटो ने बॉट लिया है और उसके हिस्से खाली दुकान ओर यह मकान है तब से में खुद घर की साज-सफाई करता हॅू ,मेहनत करता हॅू सोचता हॅू सब कुछ ठीक हो जाए लेकिन अब बुढापे ने घेर लिया है । फिर उसने जेब से एक छोटा सा पैकेट निकालकर मुझे दिया ।मेरी प्रश्नवाचक द्रष्टी को समझकर बोला ’आप जा रहे है तो मेरी तरफ से यह तुच्छ भेंट स्वीकार करे ं।’ मैने उनके चरण छूॅ लिए वे गदगद हो गए । मैंने पैंकेट खोला उसमे माता-पिता की छोडी का फोटो था ओैर एक बेटा उनके पेर धो रहा था ।
जब मेरा सामान आटो रिक्शा मे रखा जा रहा था तब वे अपने घर की खिडकी मे खडे देख रहे थे उनकी आंखे नम थी कुछ कहना चाहते थे शायद ।
और आज दोस्त से समाचार मिला की उनका निधन हो गया है तो मेरी आंखे नम हो गई।

— भारत दोसी