शाम का ख्याल
इस शाम से मैं
कुछ बातें करने के बाद
अब अलग रहना चाहता हूं
बस यही कहना चाहता हूं
कि अगर
मैं आज अकेला हूं
तो ही मैं अलबेला हूं
गज़ब आदमी होगा!
जिसने भी धकेला हूं
प्रपंचों से दूर
ना कोई मालिक ना हुजूर!
सारा का सारा दिन,सारी मेरी रात है
तो मेरे लिए ये बेहद खुशी की बात है
क्या लाभ और क्या हानि!
किसकी तारिफ किसकी मनमानी
बुद्धि का बैकुंठ या हो हिन-दीन
ना चाहिए महल ना कोई जमीन
सब्र के घूंट पीने लगा हूं
जब से मैं अकेले जीने लगा हूं
बिना किसी की परवाह किए
अब हम कुछ इस तरह से जिए
अकेलापन करामाती चूर्ण है
तब से मेरी जिन्दगी सुकूनपूर्ण है
मैने ये महसूस किया है
मैंने ये सिखा है
हर पन्ने पर लिखा है
कि अकेला इन्सान खुद के साथ
हमेशा खुश और मस्त रह सकता है
अपनी आत्मा की आवाज से कह सकता है
उस परमपिता परमात्मा का संतुलन है
वो अविरल धारा प्रवाह लिए बह सकता है