बिकता नहीं गुलाब
नफरत के बाजार में ,बिकता नही गुलाब ,
यहां सभी देते रहे ,काँटों भरे जवाब।
सच कहना आसान है ,पर उसमे है झोल ,
कांटे जिस सच से चुभें,वह सच कभी न बोल।
असफलता को देखकर,क्यों घबराता यार,
ये तो शूल पड़ाव है,आगे फूल बहार।
फूल तुझे जो चाहिए ,करना शूल क़ुबूल ,
यह जीवन का सत्य है ,जग का यही उसूल।
सभी चाहते हैं सखे ,सूंदर फूल गुलाब ,
पर उसके हर शूल से ,नफरत करें जनाब।
— महेंद्र कुमार वर्मा