कविता

बेटी बेटे में भेद नहीं

मैं भी पढ़ूंगी लिखूँगी, नाम करूँगी
सपनों की ऊंची उड़ान भरुँगी,
माता पिता का नाम करुँगी
अपनी भी नई पहचान लिखूँगी।
है हौसला मुझमें भी
कमजोर नहीं हूँ मैं,
बेटी हूँ तो क्या हुआ
इतिहास लिखूँगी मैं।
शिक्षा पर अधिकार सबका
ये दुनिया को बताऊँगी
अपने नाम का डंका
सारी दुनिया में बजवाऊँगी।
बस इतनी सी गुज़ारिश है मेरी
मम्मी पापा और दुनिया वालों से
मेरी शिक्षा की राह में बस
तनिक नहीं बांधा डालो।
जिस दिन मेरे नाम से
पहचान तुम्हारी भी होगी
तुमको तब होगा घमंड
मेरे बेटी होने पर न शिकायत होगी।
यदि सभी बेटियां पढ़ लिख लें तो
धरा स्वर्ग बन जायेगी,
बेटी बेटे में भेदभाव की कुंठा
आप सबके दिल से निकल जायेगी।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921