कहानी

अपनापन

पिछले  दिनों कवि/साहित्यकार रिशु अपने मित्र लवलेश के घर गया। यूँ तो दोनों का एक दूसरे के घर काफी पहले से आना जाना था। मगर लवलेश की शादी में रिशु अपने एक पूर्व निर्धारित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में जाने की बाध्यता के कारण  शामिल न हो सका था। रिशु जाना तो नहीं चाहता था, मगर  उस आयोजन में उसे विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। लवलेश को यह बात पता थी। इसलिए उसने रिशु को बाध्य कर दिया था।
आज जब वो लवलेश के घर पहुंचा तो लवलेश बहुत खुश हुआ। रिशु ने लवलेश के माता पिता के पैर छुए। दोनों ने रिशु को आशीर्वाद देने के साथ ही हालचाल पूछा, लवलेश और रिशु गले मिले।
लवलेश के पिता ने बहू रचिता को बुलाया और रिशु का सगर्व परिचय कराया तो रचिता ने रिशु के पैर छुते हुए कहा- मैं जानती हूँ पिताजी। मैं भी थोड़ा थोड़ा लिखने के साथ सोशल मीडिया पर पढ़ती रहती हूँ। इनका तो बडा़ नाम है।
रिशु ने रचिता को आशीर्वाद देते हुए कहा-क्या लिखती पढ़ती हो।बिना जाने समझे पाप का भागीदार बना दिया। अपनी आदत के मुताबिक ने बिना किसी औपचारिकता के जब ये कहा तो रचिता हड़बड़ा गई।
रिशु ने समझाने के अंदाज में कहा- बहन बेटियां पैर नहीं छूती।
मगर क्यों बेटा? लवलेश की माँ ने पूछा
हमारे यहाँ ऐसी ही रीत है माँ। हम बहन बेटियों से ऐसा नहीं कराते, बल्कि छोटी हो या बड़ी, हम उन्हीं के पैर छूते हैं।
यार अब ये सब छोड़  और अपनी सुना
ये अपनी क्या सुनाएगा-बहुत बिजी रहता है।समय ही तो नहीं है, इसके पास। भाई साहब से दो दिन पहले बात हुई थे, परेशान हो गये हैं इससे। पिता जी ने कहा
ऐसा मैंने क्या किया अंकल?
तूने कुछ किया नहीं बेटा। यही परेशानी है।
मतलब?
मतलब ये कि तू भी कब शादी कर ले यार।अंकल आंटी की जिम्मेदारी खत्म हो।लवलेश तपाक से बोल पड़ा
जी भाई साहब- अब देर करके हम सबका दिल न दुखाइए। रचिता ने भी अपना मत प्रकट कर दिया
वाह क्या तर्क है, अब तुम्हारे पास भी दुखने वाला दिल है। खूब पट्टी पढा़या है, सबने मिलकर मेरे खिलाफ। वाह बेटा, सबको अपनी ही पड़ी है, यहाँ पेट में चूहे भूख से कविता कर के जी बहला रहे हैं।लगता है कि खाने पीने की हड़ताल है, बस शादी सम्मेलन से ही पेट भरना है।
अरे नहीं भाई साहब।रचिता कुछ और कहती रिशु बीच में ही बोल पड़ा- सीधे सीधे भैया ही बोलो न ये साहब की पूंछ काहे पकड़ी हो। वैसे भी छोटी तो हो ही, ऊपर से सुना है कि कविता भी लिखती हो।
जी थोड़ा थोड़ा।
थोड़ा थोड़ा क्या ? पूँछ या कविता
————-रचिता कुछ न बोल सकी
अरे भाई। तुम तो दु:खी हो गई। ये नहीं चलेगा
पहले खाने पीने की व्यवस्था करो, फिर आज तुम्हारा काव्य पाठ सुनेंगे
खाने तक तो ठीक है, मगर पीने की…।रचिता मुँह बना कर बोली
अरे नहीं रे, मेरा मतलब वो नहीं है। रिशु ने सफाई दी
लवलेश की माँ  बोल पड़ी चल बेटा क्या पता इसके पास समय है भी या नहीं।
ऐसा क्यों कहती हो मां। अब अगर इतना भी समय नहीं रहेगा, तो इस जीवन का क्या मतलब है? रिशु थोड़ा गंभीर हो गया
बात तो ठीक है भैया मगर जितना मैंने सुना है उतने में तो आपसे मिलना भी मुश्किल होता है।अब इतनी आसानी से आपसे कं मुलाकात हो जायेगी, ये तो सोच भी नहीं सकती थी।
पगली हो तुम, अपने परिवार के लिये भी समय नहीं निकाल सकता तो धिक्कार है।
रचिता अपनी सास के साथ किचन में चली गई।
लवलेश और रिशु अपने में और लवलेश जी के पिताजी टीवी में व्यस्त हो गए।
खाने की मेज आप सभी का इंतजार कर रही है। मां ने दो घंटे बाद आकार हुक्म सा सुना दिया।
सभी खाने की मेज पर आ गए।रचिता
ने खाना परोस दिया, उसकी सास ने खाना शुरू करने को कहा तो उसके ससुर ने रचिता को भी साथ बैठने का हुक्म सुना दिया।
रचिता संकोच करते हुए बोल पड़ी आप लोग खा लें, मैं बाद में खा लूंगी।
अरे बेटी बैठ जाओ। रिशु भी घर का बच्चा है।
रचिता भी आखिर बैठ ही गई।
खाना शुरू कीजिये भैया। रचिता ने रिशु से कहा
ऐसे कैसे शुरू कर दूं, पहली बार तेरे हाथों से बना खाना खाना है, तो तुम्हें  कुछ देना भी तो चाहिए ।बोल क्या चाहिए?
कुछ नहीं बस अपना आशीर्वाद दे दीजिए।
वो तो देता ही रहूंगा, फिर भी कुछ मांग ले। क्या पता फिर कब तेरे हाथों खाने को मिले।
ऐसा क्यों कह रहे हैं। मगर मैं जो माँगूगी ,वो आप पक्का ही देंगें।
हाँ, बिल्कुल, क्यों? विश्वास नहीं हो रहा है, अरे सबके सामने बोल रहा हूँ, बोल तो क्या माँगती है।
देख लो माँ जी ये आपके घर का बच्चा कहीं खाने की मेज न छोड़कर भाग जाय।
रिशु ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा- तू माँग तो सही।
तो फिर आप जल्दी से शादी कर लो।
सब चौंक गए।
वाह बेटा। तू पक्का बड़ी कवयित्री बनेगी, बड़े पते की बात की है।चल जो तू जो चाहती है,स्वीकार है। जब जहां जैसा तुम सबकी इच्छा होगी, मैं चुपचाप स्वीकार कर लूंगा।बस अब खुश
हाँ भैया।पहली बार में ही आपने मुझे इतना बड़ा उपहार दे दिया कि बस……।रचिता की आँखें नम हो गई ।
अरे तू तो रोने लगी।

नहीं भैया।सोचती थी काश मेरा भी कोई भाई होता तो…….।
तो क्या, मैं तेरा भाई नहीं हूँ। चल आज से ,अभी से तू मेरी बहन है।अब कभी मत कहना कि तेरा कोई भाई नहीं है।आज से मैं तेरा भाई हूँ।
रचिता  रिशु कि हाथ पकड़ कर रो पड़ी।हाँ भैया, आप मेरे बड़े भैया हैं।इससे बडा़ तोहफा मेरे लिए और कुछ हो भी नहीं सकता।
रचिता के आँसुओं को पोंछते हुए रिशु  उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला-अरे पगली इसमें रोने की क्या बात है? भरोसा नहीं हो रहा है।
ऐसा नहीं है भैया अचानक से आप ने इतना अपनापन और अधिकार दे दिया कि खुशी से आँसू निकल ही आए।
लवलेश और उसके मम्मी पापा की आंखों में भी नमी तैर गई।
खाना ठंडा हो चुका था।अब लवलेश की मम्मी बोल ही पड़ी अरे बहू अब भाई बहन मिलन अध्याय को थोड़ा विश्राम दो, तो भोजन अध्याय भी पढ़ा जाये।
रचिता झेंपते हुए बोली-जी माँ जी।
रिशु की आँखों में रचिता के अपनेपन की  नमी अभी भी साफ दिख रही थी।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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