कविता

पिता

पिता का आशीर्वाद
हरे दुर्वा दल के जैसा ;
जिंदगी में कभी अपने को कमजोर न समझना ,
थोड़े से में भी खुश रहना।
पिता  का  दुलार
शहद के जैसा ;
मातृभूमि रक्षा हेतु ,धूलि तिलक कर ,
वीर पुत्र को रण क्षेत्र में भेजते ,
पिता की डांट
नीम  के  जैसा ;
हमारे अंतर्निहित दुर्गुणों को दूर कर देते ,
पिता की फटकार
नारियल के जैसा ;
हमें हर मुश्किलों से लड़ना सिखाते,
पिता का हृदय
सागर के जैसा ;
हमारी बड़ी गलतियों को भी क्षमा कर ,
नेक राह पर चलने को कहते ,
पिता की सीख
चेतना प्रकाश जैसा ;
जीवन के हर मोड़ पर
अर्थ से भी  मूल्यवान ।
— चेतना चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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