संस्मरण

रेल का सफर

लगभग पच्चीस छब्बीस वर्ष पहले की बात है। जब मैं अपनी माँ और बहन को लेकर मिहींपुरवा (बहराइच) से रेल द्वारा गोण्डा से आ रहा था।
उस समय छोटी रेल लाइन थी, साथ ही एकल पटरियां थीं। नानपारा में क्रासिंग होने के कारण मैं दो तीन और परचितों के साथ स्टेशन के बाहर चाय पीने चला गया। बातचीत में मगशूल होने के कारण  रेलगाड़ी कब चली गई कि पता ही न चला।  टिकट भी मेरे पास था ओर रेलगाड़ी में मांँ बहन अकेली थी।उन्होंने कभी अकेले यात्रा भी न की थी।
अब तो विकल्प के तौर पर भागकर बस से बहराइच आया और बस से उतरकर सीधे स्टेशन पहुंचा ,वहाँ पर एक मिनट पहले स्टेशन पहले छूट चुकी दूर जा चुकी रेलगाड़ी मुझे मुँह चिढ़ा रही थी।
फिर स्टेशन से बाहर आकर पीसीओ से मामा को डरते डरते फोन पर सारी बात बताई, तो उन्होंने परेशान न होने की बात कही और आराम से आने की सलाह दी, तब थोड़ी तसल्ली हुई।
फिर बस द्वारा मैं गोण्डा पहुंचा, जहाँ मांँ और बहन मामा स्टेशन से लेकर अपने साथ लेकर घर आ चुके थे। ये देखकर तसल्ली हुई।
मुझे देख नसीहतों की झड़ी लग गई। रेल का ये सफर हमेशा के लिए यादगार बन गया।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921