बिछड़ता गया हर कोई मुझसे,
जिसे चाहा देह, रूह और प्राणों से,
हर कोई मोह का सौदा करता गया मुझसे,
एक-एक कर के बिछड़ता गया हर कोई मुझसे।
रुख्सारों मे जो बहे आँसू, उन्हें किसी ने न देखा,
मश्गलों में जो सहे जज्बात, उन्हें किसी ने न जाना।
शाबाशी में कोई मेरी शौहरत मनाने न आया,
मय्यत में न आये कोई जनाजे को कांधा देने।
चिता की चटक को अंगारों में अकेले छोड़ कर,
एक-एक कर के बिछड़ता गया हर कोई मुझसे।
अपने-अपनों को मेरी जगहें देकर,
पैरों में पड़ें छालों को रिसता छोड़ कर,
हर कोई बदनामी में बिसरता गया मुझसे,
एक-एक कर के बिछड़ता गया हर कोई मुझसे।
मलाल होगा हर किसी को एक वक़्त के बाद,
साथ देने का जो वादा करते थे,
अंधा विश्वास करती थी मैं जिस प्यार और परिवार पर,
जिन्दगी को तार-तार कर, मुझे ही अंधा साबित कर के,
एक-एक कर के बिछड़ता गया हर कोई मुझसे।।
— रेखा घनश्याम गौड़