कविता

सपने

नजरें चुरा रहा है बेटा,
माता नीर बहाती है।
टूट गए सपने वो सारे,
अब भी नयन बिछाती है।
कितनी आसानी से तोड़ा,
उसने नाजुक दिल  तेरा।
रक्तिम-आंसू रुला-रुला कर,
भींगा आंचल तेरा।
जख्म दिया है दिल में गहरा,
भूल कभी नहिं पायेगी।
जब तक तन में प्राण रहेगें,
घाव छुपाती जायेगी।
जब मन हो जाये आ जाना ,
आशियान को पाने को।
ले न सका जो यह दिल प्यारा,
लेना लूट खजाने को।

— मंजू मीरा ‘सजल’

मंजू मीरा 'सजल'

नागौर,राजस्थान