क्यों न जिंदगी को फिर से
एक नए सिरे से शुरू करें
तुम लौट चलो उसी ओर
जहां से चले थे हाथ पकड़कर
भुलाकर वो सारे किस्से
वो अतीत का कड़वा दौर
देखो आज फिर से पुकार रहा है
वही सपनों का सफर
वो चाहतें बच्चों की
वो खिलौनों का पुराना दौर
आज सब पीछे छूट गया
चलो न चलते हैं आज कहीं और
क्यों दखल दें बच्चों के काम में
क्यों मुँह देखें हर बात में
आज है नया चलन
पीछे छूट गया अपनों का शहर
तुम हो मैं हूँ फिर क्या हो गम
चलो न फिर से जवान बन जाएं
हम खो जाएं हसीन वादियों में
परवान चढ़ जाये सपनों का नगर
— वर्षा वार्ष्णेय