स्कूल चलें हम
स्कूल चलें हम 💼✏️
टकटकी बांधे सलोनी की लड़की स्कूल जाते बच्चों को देखा करती l उसकी आंखों में स्कूल न जाने पाने का दर्द संध्या सदैव महसूस करती थी l सलोनी घर में काम करने वाली एक बाई थी l एक दिन अरे सलोनी कितने बच्चे हैं तुम्हारे संध्या ने पूंछा ? जी छः,तीन लडके और तीन लड़कियां और सातवां आने वाला है l क्या?
सलोनी आवाक थी और वह इतना बोल मुस्काते हुए पोंछा लगाती रही l
उससे फिर पूँछा क्या तुम्हारा कोई भी बच्चा स्कूल जाता है ? नाहीं भाभी! 6 घर के काम से केवल पेट की भूख मिटाई जावे है स्कूल कहाँ ? और तुम्हारे आदमी की कमाई! निगोड़ा रिक्शा चलावे की जगह छाहीं मा खड़ा करके सोवा करें है l थोड़ा बहुत जो कमावे ऊकी दारू पी डाले है l
बेटी को स्कूल भेजनें के बाद संध्या ने सलोनी की लड़की को बुलाया,क्या नाम है तुम्हारा? सरस्वती l अरे वाह नाम तो बहुत अच्छा है तुम्हारा l माँ का हाथ बटा ती हो, क्या स्कूल जाने का मन करता है? पर वो मौन रहती है शायद अपनी परिस्थिति का भान था उसे l
इको साथ लाते है ताकि ई भी जल्दी काम सीख सके l बड़ी बिटिया भी एक घर पकड़े है 12 साल की हो गयी है l
रात को ज़ब संध्या बिस्तर पर आयी उसे नींद ही नहीं पड़ रही थी l सलोनी की बातें उसके मस्तिष्क में गूँज रही थी और उसकी आँखों के आगे मासूम सरस्वती का चेहरा नाच रहा था l उसकी आँखों की मौन भाषा ने संध्या की नींद उड़ा दी थी l सरस्वती मानो उससे पुकार – पुकार कर कह रही हो, मुझे अम्मा का काम नहीं सीखना मुझे भी स्कूल जाना है,मुझे भी स्कूल जाना है ss
तभी विनय की नज़र संध्या पर पड़ती है l क्या हो गया चेहरे पर दर्द मिश्रित ये चिंता की रेखाएं और इतनी रात गए बैठी क्यों हो ? क्या परेशानी है l
कुछ नहीं सलोनी की बच्ची की मासूम ननीदी आँखों में पढ़ने की ललक देखी पर किस्मत ने बर्तन मांजना लिख दिया l
क्या उसकी किस्मत बदल नहीं सकते हम l क्यों नहीं हम उसका दाखिला पास के सरकारी स्कूल में करा देंते हैं l बहुत खर्चा भी नहीं आऐगा इसे हम आसानी से उठा सकेंगे l
अगले दिन सलोनी काम पर आई तो सरस्वती भी माँ का हाँथ बटाती नन्हें हाथों से बर्तन धो रही थी, तभी संध्या एक छोटा सा बस्ता, बोतल, लिए सरस्वती के पास आकर उसे प्यार से उठा लेती है l कंधे पर बस्ता लटकाटे हुए बोल पड़ती है सरस्वती बेटी चल स्कूल चले हम l सलोनी आवाक सी संध्या को देख रही थी और आँखों में ख़ुशी के आंसू थे l सरस्वती की आँखें अनोखी चमक से झिलमिला उठी और होठों पर मुस्कान खिल गयी थी l
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )