कविता

शब्दों की खिड़कियां

शब्दों की खिड़कियां जब खुल जाएं,
शब्द मनभावन हों तो
फिर से खाद-पानी पाकर
अनेक रिश्ते ताजातरीन हो जाएं,
चुंबक की तरह आकर्षित होकर
अनेक नए रिश्ते स्वतः ही जुड़ जाएं,
स्नेह-प्यार की शीतल बयार से
आनंद की कलियां खिल पाएं,
अज्ञात जाज्ज्वल्यमान उजियारे से
चेहरे खुद ही दीप्तिमान हो जाएं.

शब्दों की खिड़कियां जब खुल जाएं,
शब्द अनभिमत हों तो
अनेक रिश्ते दरक जाएं,
अपने किनारा कर जाएं,
खिली कलियां मुरझा जाएं,
आती हुई बहारें सरक जाएं,
अंधियारों के दरीचे खुल जाएं.

शब्दों की खिड़कियां
सोच-समझकर खोलो
बोलने से पहले शब्दों को तोलो
एक भी शब्द व्यर्थ मत बोलो
जीवन में आनंद-रस घोलो,
इस तरह
शब्दों की खिड़कियां खोलो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244