कुण्डली/छंद

कुण्डलिया छंद

चोरी नैनों से करे, लूटे मन का चैन।
जब तब पलके मूंद कर, दिन को कर दे रैन ।।
दिन को कर दे रैन , पिया की है छवि प्यारी ।
मनमोहे मनमीत, और मैं मन से हारी ।।
कहे साधना बात , प्रीत की है जो डोरी।
बाँधे तोड़े आज, हृदय की कर के चोरी ।।
— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)