गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बात कोई न थी पर खटकती रही
मैं यूं खामोश तन्हा भटकती रही ।

दिल ने चाहा के हर दायरा तोड़ दूं
चूड़ियां हथकड़ी सी खनकती रही।

हाल ए दिल उनसे् कह पाए कभी
बात होंठों पे आकर अटकती रही।

रो न पाए के आंखों में तेरी तस्वीर है
पर आंखों से ओस जैसी टपकती रही ।

सब हाथ में था मगर न रिहा हो सके
चाभी दीवार पर ही लटकती रही।

वो थे महफ़िल में अपनों की फिर भी सुनो
एक मायूसी उन पर चमकती रही ।

सोचती हूं के जानिब कहूं चुप रहूं
कली चाहत की दिल में चटकती रही।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर