कविता

2500 मील लंबी शब्द-यात्रा

शब्द से शब्द निकलता है
बात से बात निकलती है
किस्से से किस्सा निकलता है
कभी-कभी यह यात्रा
2500 मील लंबी हो जाती है
शब्द-यात्रा की तरह.
शब्दों की क्या बात कहें,
शब्द चलके जाते हैं 2500 मील,
न इनको चलने के लिए कोई सवारी चाहिए,
जाने कैसे पार करते हैं देश-पर्वत-सागर झील!
‘जब हम करते हैं प्रशंसा… तो कहते हैं वाह,
और जब शब्द चुभ जाते दिल को…
तो दिल से निकलती आह,
जब नहीं सूझता दिल को भी कुछ…
तो सुन लेना मीठे भजन,
मेरे कृष्ण कन्हैया जरूर निकालेंगे कोई राह.’
‘कुछ शब्द आसमां में गरजते रहते हैं…
फिर पानी बन बरसते रहते हैं,
कुछ शब्द खो जाते हैं हवा में…
कुछ मोम से पिघलते रहते हैं,
कुछ शब्द बिना कहे सुनाई देते हैं…
कुछ शब्द कानों में गूंजते रहते हैं,
कुछ शब्द अकेले रहते हैं…
कुछ शब्दों में भी जुड़वां होते हैं.’
शब्दों को तो साथ चाहिए…
किसी को एक तो कहीं हजारों बात चाहिए,
कुछ शब्द कह करते आगाज सुबह का…
और कुछ शब्दों के लिए रात चाहिए,
बारिश की बूंदों में भी देखो…
छिपे हुए हैं कितने शब्द,
भावनाएं शब्द बन उतरेंगी कागज पर…
बस, मन में छिपी बात चाहिए.
‘हर पल हम जीते हैं इसी उधेड़बुन में…
क्या जो सोचा, वो पूरा होगा?
क्या होंगे पूरे जो देखे थे सपने…
क्या किस्मत में सुनहरा सबेरा होगा ?
जानते हैं हम सारे ये दुनिया एक रंगमंच है…
नहीं है कोई किसी का,
आज जो किरदार निभा रहा कोई…
वो किरदार कल किसी और का होगा.’.
दोस्त शब्द नहीं जो मिट जाए,
उमर नहीं जो ढल जाए,
सफर नहीं जो कट जाए,
ये तो वो अहसास है,
जिसके लिए जिया जाए,
तो ज़िंदगी भी कम पड़ जाए.
मधुर शब्दों में कही हुई बात,
अनेक प्रकार से कल्याण करती है,
किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए,
तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है.
मीठे बोल संक्षिप्त और बोलने में आसान हो सकते हैं,
लेकिन उन की गूंज सचमुच अनंत होती है.
बस एक ही बात सीखी है ज़िन्दगी में,
अगर अपनों के करीब रहना है तो मौन रहो,
अपनों को करीब रखना है तो बात दिल पर मत लो.
कुछ शब्द चुस्त होते हैं वे चुस्त बना दें,
कुछ शब्द सुस्त होते हैं वे सुस्त बना दें,
कुछ का पता नहीं, वे क्या-से-क्या करा दें,
कुछ शब्द सामने आते ही तंदुरुस्त बना दें.
शब्दों के खेल को समझे कोई खिलाड़ी,
वह क्या समझे जो खुद हो अनाड़ी,
कुछ दिखने में बेतहाशा खूबसूरत,
पर खींच न सकें एक इंच गाड़ी.
शब्द ही माला हैं शब्द ही हैं लड़ियां,
शब्द ही पायल हैं शब्द ही हैं हथकड़ियां,
कुछ शब्द होते सस्ते कुछ अनमोल होते हैं,
कुछ होते हैं भाला और कुछ फुलझड़ियां.
ये शब्द ही उधेड़बुन करवाते हैं,
ये शब्द ही उधेड़बुन सुलझाते हैं,
इन शब्दों का कोई रंग-रूप नहीं,
फिर भी कभी हंसाते हैं, कभी रुलाते हैं.
शब्द ही मन में छिपी बात जान जाते हैं,
कभी ये रूठते कभी मान जाते हैं,
इनकी महिमा को कोई कैसे जाने!
जाने कब रीझते कब ख़ार खाते हैं.
कुछ पृष्ठों पर शब्द हैं बिखरे
कुछ पर पूरा वाक्य लिखा
लेकिन जितना लिखा था
उसका सच्चा-सच्चा साक्ष्य लिखा
पूर्णविराम को प्रश्नचिन्ह कुछ फिर भी घूरे रहते हैं
…….कुछ गीत अधूरे रहते हैं
शब्द नहीं हों तो भी इजहार हो जाएगा,
बिना कुछ कहे भी प्यार हो जाएगा,
पर जब भी चलेंगे तीर आंखों से,
बिना धनुष के भी वार हो जाएगा.
बड़ी जान है आपके शब्दों में,
प्यार से कहो, तो मोह लेते हैं दिल को!
यार बन कहो तो टोह लेते हैं दिल की!
बच के रहिए शब्दों की मार से.
शमशीर के घाव भर जाते हैं वक़्त के साथ,
पर शब्दों के घाव नहीं मिटते मरने के बाद भी!
‘कुछ शब्द होते हैं वजनदार और…
कुछ शब्द इकहरे होते हैं,
कुछ शब्द होते हैं धवल चांद से…
और कुछ शब्द सुनहरे होते हैं.
कुछ शब्द होते इंद्रधनुष से…
कुछ शब्दों पर पहरे होते हैं,
कुछ शब्द मचलते चंचल से…
और कुछ शब्द दिल में ही ठहरे होते हैं.’
शब्दों की है चकाचौंध… शब्दों का है मायाजाल,
जब होते मीठे लगते प्यारे…
कड़वे बन जाते जी का जंजाल,
एक शब्द के अर्थ अलग हैं…
कहने से पहले थोड़ा सोचो,
शब्दों से ना हो बुरा किसी का…
मिलाओ सुर .. मिला कर ताल.
कुछ शब्द जुबां पर आते आते छूट जाते हैं,
शब्द मीठे हों तो दिल लूट जाते हैं,
शब्द भी हो जाते हैं बिखरे हुए-से,
गलत बोल दिया तो दिल टूट जाते हैं.
अच्छी रचनाएं पढ़ कर हम हमेशा सीखते हैं,
शब्द कलम पर आने को मचलते हैं,
फिर भी थोड़ा ठहरते हैं,
अगर नहीं समेटे तो बिखरते हैं.
सर्वश्रेष्ठ संवाद वही है
जो शब्दों में सीमित
और अर्थों में असीमित हो.
शब्द असंख्य हैं, नहीं हो सकती इनकी गिनती,
कड़क हों तो कहें आदेश, कुछ मांगें तो विनती.
शब्दों के रंग फिर जमेंगे… फिर बहारें आएंगी,
शब्दों की रंगबिरंगी कलियां गुलिस्तां महकाएंगी.
जो कह दिया वह शब्द थे,
जो नहीं कह सके वह अनुभूति थी
और
जो कहना है, फिर भी नहीं कह सकते वह मर्यादा है।।
शब्दों को कोई भी स्पर्श नहीं कर सकता.
पर
शब्द सभी को स्पर्श कर जाते हैं.
दो लफ़्ज़ तुम्हें सुनाने के लिए,
हजारों लफ़्ज़ लिखे जमाने के लिए.
शर्त लगी थी खुशी को एक अल्फ़ाज़ में लिखने की,
लोग किताब ढूंढते रह गए, हमने दोस्त लिख दिया!
विश्वास शब्द में विष भी है और आस भी,
यह स्वयं पर निर्भर करता है,
कि आप अपने लिए किसे चुनते हैं.
अपनापन छलके जिस की बातों में,
सिर्फ़ कुछ ही बंदे होते है लाखों में !’
बोलना और प्रतिक्रिया करना जरूरी है,
लेकिन संयम और सभ्यता का दामन नहीं छूटना चाहिये..!!
शमशीर के घाव भर जाते हैं वक़्त के साथ,
पर शब्दों के घाव नहीं मिटते मरने के बाद भी!
‘कुछ शब्दों की होती परिभाषा…
कुछ शब्द जगाते मन में आशा,
कुछ शब्द निराशा वाले होते…
कुछ शब्दों की मीठी भाषा,
कुछ शब्द काल्पनिक होते हैं…
और कुछ शब्द होते हैं जीवंत,
बेमिसाल तीर यूं ही चलते रहेंगे…
क्योंकि शब्द होते हैं अनंत.’
शब्दों के तीरों की बात मत पूछो,
कैसे-कैसे घाव दे जाते हैं!
तुर्रा यह कि “हम तो मात्र शब्द हैं” कहकर,
पतली गली से कहीं निकल जाते हैं.
सिलाई उधड़े तो टांके उधड़ जाते हैं,
शब्द उधड़ें तो रिश्ते उधड़ जाते हैं.
‘कुछ शब्द जुबां पर आकर ठहरे…
कुछ शब्दों पर लग गए पहरे,
कुछ शब्द लगते हैं वजनदार…
और कुछ शब्द होते हैं इकहरे,
कुछ शब्द बरसाते आग भी…
कुछ शब्द सुन कर मिल जाती राहत भी,
कुछ शब्द बिन कहे सुनाई देते हैं…
कुछ शब्द सुनकर कान हो जाते बहरे.’
‘कुछ शब्द करते हैं परिहास…
कुछ शब्दों में छिपा अट्टहास,
कुछ शब्द होते आक्रामक से…
और कुछ शब्दों में होता भीना अहसास,
कुछ शब्दों का वजूद एक है…
पर अर्थ अलग है, साथ अलग है,
कुछ शब्द कड़वाहट से भरे होते…
कुछ शब्द आ जाते मन को रास.’
शब्दों के वजूद में अपना वजूद न खो देना,
शब्दों को अपना बना लेना या खुद शब्दों के हो लेना,
मिल-जुलकर जो नया स्वर्णिम रंग सजेगा,
उस रंग में खुद को रंग लेना,
यह रंग ही खेवनहार बनेगा,
नैय्या को इसके हवाले कर देना,
शब्दों के उलझे मकड़जाल से,
करके किनारा पार हो लेना.
आने दो शब्दों की उतुंग लहरें,
फहरने दो शब्दों की पताकाएं,
लहरें दरिया में नृत्य करेंगी,
होंगी दूर सारी निराशाएं,
शब्दों से जोश जोशीला होगा
शब्दों से पूरी होंगी आशाएं,
मिल जाएंगे रास्ते खुद-ब-खुद,
होंगी दूर सारी बाधाएं.
शब्दों की क्या बात कहें,
ये चाहें तो दिन को रात कहें,
आसमान में तैरा दें मछलियों को,
पंछी दरिया में रहने की बात कहें.
शब्दों की गंगा-जमुनी तहज़ीब,
संस्कृति के फूल खिलाती है,
सुसंस्कारों की फसल है उगती,
प्रगति मन को लुभाती है.
शब्दों की सीमा जब दहलीज लांघ के जाती है,
उन्नति जाने कहां जाती है, अवनति पंख पसारती है,
कोने बैठ के रोती सभ्यता, संस्कृति भी रूठ के जाती है,
अपशब्दों की बौछार है होती, प्रीत न प्रीत निभाती है.
उधड़ी हुई ऊन के जैसे बल कभी पूरे जाते नहीं,
वैसे ही शब्द उधड़ जाएं तो, स्नेहिल मन को लुभाते नहीं.
ऐसा यत्न करें सब मिल के, शब्द उधड़ ही पाएं नहीं,
समय अभी है खुद को संभालें, हाथ से निकल न जाए कहीं!
शब्द मधुर तो मन भी मधुर हो,
शब्द हंसें तो हंसता जगत हो,
शब्दों का रोना कैसे रुके जब,
शब्दों की खर-पतवार प्रगति पर हो!
पर शब्द नहीं है सिर्फ ब्रह्म
शब्द ब्रह्म होने का पूर्वाभास भी है
और पूर्वाभास
हदों को फलांग-फलांग कर
बिखर जाता है
चीहनी अनचीहनी दिशाओं में
ढोता है शब्द भविष्य में अतीत..!!
चलो आज थोड़ी शब्दों की उधेड़बुन कर लें,
विवाद खड़ा करते हैं जो शब्द उन शब्दों को विदा कर दें,
शब्दों की जगह खाली न रह जाए,
उसको मधुर-सुभग शब्दों से भर दें.
सहेज लो शब्दों को, बिखरने मत दो.
पौध को प्यार से पालो, उजड़ने मत दो,
उजड़ गई पौध तो पड़ जाएंगे खाने के लाले,
बिखर गए शब्द तो फिर संभलेंगे नहीं संभाले,
निखरे शब्दों की सौगात भावी पीढ़ी को सौंप दो,
आनंद की बगिया में प्रेम के पौधे रोप दो.
ये शब्दों की कारीगरी है, जो कविता बन जाते हैं,
कभी दोहे कभी रुबाई बन जाते हैं,
किताबों में होते हैं शब्दों के अक्स,
जब जो चाहें ये बन जाते हैं.
शब्दों को मत खोने दो निवालों में,
शब्दों को मत खोने दो सवालों में,
महकने दो शब्दों को आनंद की बगिया में,
कि ये शब्द ही बन गजरा महकेंगे दुलहन के बालों में.’
‘कुछ शब्द खो जाते निवालों में,
कुछ शब्द खो जाते सवालों में,
कुछ शब्द महकते फूलों में,
और कुछ शब्द चिपक जाते डालों में,
कुछ शब्द रहते खिले-खिले से,
महक भर देते मन में,
कुछ शब्द सजने को आतुर,
बन गजरा दुलहन के बालों में.
शब्दों की बात खुद शब्द कहते हैं,
लब नहीं खोलते फिर भी सब कुछ कहते हैं,
कुछ शब्द ही ऐसे होते हैं,
जो दिल में उतर जाते हैं,
जिनको तव्वजो न दो वे भाग जाते हैं,
भागते हुए शब्दों को कोई पकड़ नहीं पाया,
जिसने कोशिश की उसने खुद अपना आप गंवाया,
इसलिए समय रहते मनभावन शब्दों को दिल में उतार लो,
इन्हीं मनभावन शब्दों अपने तन-मन-जीवन को संवार लो.
शब्द प्रणाम है,
शब्द परिणाम है,
शब्द सम्मान है,
शब्द प्रमाण है.
शब्दों से दुनिया में खेल है,
शब्दों से दुनिया में मेल है,
शब्द अगर इधर-उधर हो जाएं,
तो दुनिया में रेलमपेल है.
शब्द विशेष होते हैं… और कुछ होते हैं सम भी,
मन में भर देते उजाले… कुछ भर देते तम भी,
कुछ शब्दों की बिन कहे होती… कुछ शब्द अनबूझ पहेली भी
और कुछ शब्द बन जाते दोस्त… और कुछ हो जाते सहेली भी.
‘कुछ शब्द होते हैं वजनदार और…
कुछ शब्द इकहरे होते हैं,
कुछ शब्द होते हैं धवल चांद से…
और कुछ शब्द सुनहरे होते हैं.
कुछ शब्द होते इंद्रधनुष से…
कुछ शब्दों पर पहरे होते हैं,
कुछ शब्द मचलते चंचल से…
और कुछ शब्द दिल में ही ठहरे होते हैं.’
हर शब्द का अपना अंदाज होता है
हर शब्द में छिपा कोई अनकहा राज होता है
ज़ुबां कुछ कहे-न-कहे
अक्सर आशीर्वाद बिना आवाज होता है.
ख़ुशी या ग़म और कुछ भी नहीं,
बस अपने शब्दों का  चुनाव है.
शब्द जुबां से निकल जाते हैं,
कहते ही दिल को छू जाते हैं,
कुछ शब्द रहते हैं मन में भरे हुए,
कुछ जीवंत-से और कुछ डरे हुए.
शब्दों की महिमा तो देखो,
मुख से बोलें बोल,
कभी-कभी नयनों से बोलें,
सभी राज दें खोल.
शब्दों की खिड़कियां जब खुल जाएं,
शब्द मनभावन हों तो
फिर से खाद-पानी पाकर
अनेक रिश्ते ताजातरीन हो जाएं,
चुंबक की तरह आकर्षित होकर
अनेक नए रिश्ते स्वतः ही जुड़ जाएं,
स्नेह-प्यार की शीतल बयार से
आनंद की कलियां खिल पाएं,
अज्ञात जाज्ज्वल्यमान उजियारे से
चेहरे खुद ही दीप्तिमान हो जाएं.
शब्दों की खिड़कियां जब खुल जाएं,
शब्द अनभिमत हों तो
अनेक रिश्ते दरक जाएं,
अपने किनारा कर जाएं,
खिली कलियां मुरझा जाएं,
आती हुई बहारें सरक जाएं,
अंधियारों के दरीचे खुल जाएं.
शब्दों की खिड़कियां
सोच-समझकर खोलो
बोलने से पहले शब्दों को तोलो
एक भी शब्द व्यर्थ मत बोलो
जीवन में आनंद-रस घोलो,
इस तरह
शब्दों की खिड़कियां खोलो.
शब्दों ने शब्दों से सजाया सपनीला संसार,
चाहा था शब्दों ने सिखाना केवल प्यार-ही-प्यार,
जाने कैसे शब्दों से ही नफरत का फैला जाल,
नफरत के बोलों से यह जग भूल गया है प्यार.
शब्दों की खिड़की ने खोला, झट से प्यार का द्वार,
जाने कैसे वैर घुस गया, प्यार हुआ बेगार.
रिश्ते सारे चूर हो गए, भटक गया संसार,
बंद हुए कपाट खुशी के, प्यार दिखा बेकार.
शब्द सिखाते हैं मुश्किल में,
आंख खुली रखने का लाभ,
मुश्किल भी हल हो जाती जब,
इनसे शक्ति मिले नायाब.
शब्दों का मेला है दुनिया, अद्भुत इनका खेल,
पल में ये विद्रोह कराते, पलक झपकते मेल,
जो भी इनका दास बना वह, हो गया जग में फेल,
इनको अपने बस में रखना, वरना ठेलमठेल.
जो कोई समझ न सके वो बात हैं हम;
जो ढल के नयी सुबह लाये वो रात हैं हम;
छोड़ देते हैं लोग रिश्ते बनाकर;
जो कभी न छूटे वो साथ हैं हम।
अक्सर शब्द छेड़ते हैं तराने,
कोई सुने-न-सुने, माने-न-माने,
इन्हीं तरानों से चलती है दुनिया,
किसी को होती निराशा,
कोई बुने खुशी के ताने-बाने.

शब्द भी क्या चीज है?
महके तो लगाव
और बहके तो घाव.

शब्दों का वजन तो
बोलने वाले के भाव पर आधारित है
एक शब्द गाली हो जाता है
एक शब्द मंत्र हो जाता है
वाणी ही व्यक्ति के
व्यक्तित्व का परिचय करवाती है.

शरीर सुंदर न हो
पर शब्द सुंदर होना चाहिए
लोग चेहरा भूल जाते हैं
पर शब्दों को नहीं.

चुप रहना ही बेहतर है
जमाने के हिसाब से धोखा खा जाते हैं
अक्सर बहुत बोलने वाले.

शब्दों में भले गुंजन होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.

शब्द मौन हों तो मलाल नहीं,
मुखर हों तो ख्याल नहीं,
शब्द मौन रहकर भी वार करें,
जब करते शब्दों की संभाल नहीं.

शब्दों ने शब्दों से कहा, सुन लो प्यारी बात,
सबको प्यार का पाठ पढ़ाना, नहीं सिखाना घात,
बात गांठ ली थी शब्दों ने, किया वही था काम,
जाने कैसे शब्दों ने फिर, वैर का सूत दिया कात!

कुछ अनमोल शब्द हमारी जिंदगी संवार देंगे,
उन्हीं का मतलब निकाला मनमाना, जिंदगी बिगाड़ देंगे.

शब्द भी भोजन की तरह हैं,
अगर खुद को पसंद नहीं है,
तो दूसरों को मत परोसिए.

शब्दों का सदुपयोग,
अपने आप में बहुत अच्छी चीज है,आड़े समय में काम संवारता है, ज्ञान भी बढ़ाता है,
शब्दों का दुरुपयोग,
अपने आप में बहुत बुरी चीज है,
खुद का भी नाश करता, परिवार-देश-समाज का भी,
मर्जी हमारी है, शब्दों से हम बिगड़ना चाहते हैं या संवरना!

शब्दों की नैय्या पर चलें,
शब्द “एकता” साथ ले चलें,
पतवार भी शब्द “एकता” की हो,
रहे न कोई मझधार में सब मिल कर चलें.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244