कविता

समय चक्र

समय चक्र विनती है कुछ पीछे घूम जाएं
 मम्मी पापा छोटी बहन  ऊपर से वापस आ जाएं
फ़िर घर में साथ बैठ हसीं ख़ुशी से देर तक बतियाएं
 हे समय का चक्र विनती हैं  कुछ पीछे घूम जाए
बीते हुए बचपन के दिन कितने सुहाने हसमुख थे
काश कभी ऐसा करिश्मा भी हो जाए
बचपन के वह सुहाने फ़िर से दिन लौट आएं
नया ज़माना छोड़ पुराने जमाने में लौट जाएं
मोबाइल कार कंप्यूटर सभ वापस चले जाएं
मम्मी पापा परियों की मुझे बस वहीं कहानी सुनाएं
बड़ी हुई भारी जिम्मेदारी से थक गया हूं वह वापिस छूट जाए
बचपन के वह सुहाने दिन वापस आ जाएं
हम थोड़े में संतुष्ट हो वह अनुभूति वापस आएं
महल गाड़ी नहीं चाहिए पुराना घर वापस आएं
कुएं तालाब पर रोज़ नहाएं वह दिन वापस आएं
मस्ती करें मम्मी पापा से डॉट खाएं
बचपन में ही सारा जीवन बताएं
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया