कविता

राम रहीम

मुझे मेरा राम प्यारा
तुझे तेरा अल्लाह
दोनों की चाहत का है
अपना अपना तरीका
पर मकसद तो एक ही है
इबादत
इबादत मंदिर में की जाए
या मज्जिद में बैठ कर
क्या इसमें  फर्क
मेरा राम तेरा अल्लाह हो जाए
तेरा अल्लाह मेरा राम
हम दोनों उसी परबरदीगर के तो बंदे हैं
लेकिन हमनें बंटवारा कर लिया
अपने परबरदिगर का
राम मेरा हो गया
अल्लाह तेरा
मैं कहूं जग राम मय
तू कहे सब अल्लाह
जब कि सच तो यह है
राम ही अल्लाह है
अल्लाह ही राम है
जिसने यह जाना
वह प्यारा अपने परबरदीगार का

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020