श्री पशुपति नाथ धाम, काठमांडू की यात्रा
बहुत दिनों से मन में विचार चल रहा था कि एक बार श्री पशुपतिनाथ धाम के दर्शन हो जाए तो कितना बढ़िया हो । ईश्वर की कृपा से आईआरसीटीसी के माध्यम से हमें श्री पशुपतिनाथ धाम काठमांडू एवं पोखरा जाने का सुअवसर प्राप्त हो गया ।
आईआरसीटीसी के पैकेज के अनुसार हमारी फ्लाइट बनारस से काठमांडू जानी थी। हमारा कुल 27 लोगों का समूह था ।
सभी यात्रियों को बनारस के एयरपोर्ट में 27 जून को सुबह पहुंचना था ।
तदनुसार हम चार लोग मुंबई से 25 जून को फ्लाइट के माध्यम से बनारस पहुंचे और 2 दिन वहां विश्राम किया ।
वाराणसी में पहले से ही हमने होटल की बुकिंग करा रखी थी, जो कि ठीक गंगा जी के किनारे स्थित था और होटल से ही गंगा जी का अद्भुत दर्शन प्राप्त हो रहा था । शाम को भव्य गंगा आरती के दृश्य का साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त होने पर मन ही मन बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा था । पूरा वातावरण हर हर गंगे और भोलेनाथ के जयकारों से गूंज रहा था । दसियों हजार की भीड़ गंगा आरती के दर्शन को लालायित थी ।
26 जून को नाव द्वारा गंगा जी के उस पार पहुंचकर गंगा स्नान का आनंद ही कुछ अलग था । तत्पश्चात प्रधानमंत्री जी द्वारा नवनिर्मित / उद्घाटित श्री काशी विश्वनाथ कारीडोर में प्रवेश करते हुए बाबा विश्वनाथ के दर्शन का शुभ अवसर मिला। काशी में भीड़ बहुत अधिक होने के कारण मंदिर में कुछ ही सेकेंड रुकने का अवसर प्राप्त हो सका, लेकिन तब भी मन तो तृप्त हो ही गया ।
शाम को संकट मोचन मंदिर के दर्शन के साथ ही वाराणसी की यात्रा संपन्न हो गयी ।
27 जून की सुबह-सुबह नेपाल की बुद्धा एयर लाइन्स के माध्यम से वाराणसी से काठमांडू के लिए रवाना होना था । हम लोग निर्धारित समय से कुछ पहले ही वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डे पर पहुंच गए । वहां पर आईआरसीटीसी के 2 प्रतिनिधि पहले से ही मौजूद थे । उन्होंने हमें हमारे टिकट, बोर्डिंग पास इत्यादि उपलब्ध कराए और हमें यात्रा संबंधित आवश्यक जानकारी प्रदान की । वाराणसी से फ्लाइट लगभग एक घंटा विलम्ब से काठमांडू के लिए रवाना हुई ।रास्ते में बादलों का सुंदर नजारा देखने को मिला । फ्लाइट में हल्के नाश्ते का भी इंतजाम था ।
काठमांडू हवाई अड्डे पर आई आर सी टी सी के गाइड श्री सुमन श्रेष्ठ जी पहले से ही मौजूद थे, जो हमारे पूरे समूह को पर्यटक बस तक ले गये , जिसमें सवार होकर हम लोगों को पोखरा के लिए रवाना होना था । पोखरा नेपाल का विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो कि समुद्र तल से लगभग 2700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । काठमांडू से पोखरा की दूरी लगभग 220 किलोमीटर की थी परंतु पहाड़ी रास्ता होने के कारण और जगह- जगह निर्माण कार्य चलने के कारण यात्रा में लगभग 10 घंटे का समय लग गया। रास्ते में सुंदर दृश्य , पहाड़ों , और बादलों के नजारे देखने को मिले । लगभग पूरी यात्रा के दौरान त्रिशूली नदी हम लोगों के साथ साथ चल रही थी। पूरे रास्ते पहाड़ी झरनों और झीलों का मनोरम दृश्य देखते ही बनता था । बीच-बीच में गाइड महोदय द्वारा पोखरा, काठमांडू आदि के बारे में रोचक जानकारी भी दी जा रही थी । साथ ही समूह के सदस्यों द्वारा भजन कीर्तन, गाना , अंताक्षरी, कविता आदि का भी पठन-पाठन चल रहा था , जिसकी वजह से सफर लंबा होने के बावजूद भी उबाऊ नही महसूस हुआ ।
खैर नियत समय पर हम लोग पोखरा में अपने होटल टीका रिसार्ट पहुंच गए और रात्रि विश्राम किया।
अगले दिन सवेरे ही हम लोग पोखरा के आस पास के दर्शनीय स्थलों के लिए निकल पड़े । गुफा के अंदर विद्यमान श्री गुप्तेश्वर महादेव जी के दर्शन और देवीस वाटर फॉल का नजारा अद्भुत था। साथ ही मौसम भी सुहाना था । शाम का समय थोड़ा मार्केटिंग के लिए भी उपलब्ध रहा । इसके साथ ही हमारी पोखरा की यात्रा संपन्न हो गई।
अगले दिन सुबह बस द्वारा काठमांडू के लिए रवाना हो गए ।रास्ते में रज्जु मार्ग ( रोप वे ) के माध्यम से पहाड़ों के शिखर पर स्थित शक्ति पीठ, मां मनोकामना देवी, मंदिर में दर्शन किया । क्योंकि मंदिर पहाड़ी की उच्चतम चोटी पर स्थित था, इसलिए रोपवे से यात्रा का आनंद अद्भुत था और घाटी का दृश्य भी बहुत ही मनोरम और सुंदर लगा । मनोकामना मंदिर बहुत प्राचीन और भव्य है। ऐसी मान्यता है कि देवी मां भक्तों की सब कामनाएं पूर्ण करती हैं। रात्रि में हमने काठमांडू के होटल महावीर पैलेस में विश्राम किया।
अब हम विश्व प्रसिद्ध एवं हिंदुओं के महानतम तीर्थ स्थल काठमांडू में श्री पशुपतिनाथ जी के दर्शन के लिए निकल चुके हैं। थोड़ी ही देर में हम मंदिर पहुंच गए । श्री पशुपतिनाथ जी के मंदिर का शिल्प कार्य, सुंदरता, इसकी भव्यता और विशालता का वर्णन करना मुश्किल है। पुजारी जी की मदद से हमने मंदिर में दर्शन और पूजन का भरपूर आनंद लिया और हमारी वर्षों की मनोकामना पूर्ण हो गयी। श्री पशुपतिनाथ जी के दर्शन का आनंद अलौकिक एवं अवर्णनीय है ।
खैर अब हम काठमांडू के अन्य दर्शनीय स्थलों जैसे बौद्धनाथ स्तूप, तिब्बती शरणार्थी केन्द्र, पाटन एवं श्री स्वयंभू नाथ स्तूप के
दर्शनों का लाभ ले चुके हैं और हमारी यात्रा भी सम्पन्न होने के नजदीक है।
पूरी नेपाल यात्रा के दौरान हमें कभी महसूस नहीं हुआ कि, हम भारत के बाहर हैं । सभी लोग हिंदी बहुत आसानी से समझ और बोल रहे थे ।साथ ही मौसम भी बिल्कुल भारत का ही लग रहा था
नेपाल जाने के लिए हमें वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है ।
वहां की करेंसी की वैल्यू भारतीय रुपए की वैल्यू से कम होने के कारण, हमारे १०० रुपए नेपाल के १६० रुपए के बराबर होते हैं, हमें वस्तुएं ज्यादा महंगी भी नहीं लगी । भारतीय रुपया सभी लोग आसानी से स्वीकार कर लेते थे ।
मंदिरों में पंडित और पुजारियों द्वारा पढ़े जाने वाले मंत्र बिल्कुल भारतीय मंत्रों की ही तरह थे ।
कुल मिलाकर हमारी नेपाल यात्रा अत्यंत सुखद और मंगलमयी यादों से भरी रही । बड़ा समूह होने के कारण यात्रा का आनंद और भी बढ़ गया था
जय हो बाबा श्री पशुपतिनाथ जी की।
— नवल अग्रवाल