गीत/नवगीत

पड़ोसी

पड़ोसी देश की, हालत बुरी है
अर्थव्यवस्था, बदहाल खड़ी है
जनता सड़क पर, लाचार खड़ी है
अफरातफरी, मची पड़ी है ।।

कोई नही है, सुधि लेने वाला
श्री लंका का तो,निकला दिवाला
राष्ट्रपति देश, छोड़कर भागे
कहां जाएं, देशवासी अभागे ।

मुश्किल की घड़ियां, आन पड़ी हैं
अफरातफरी, मची पड़ी है ।।

आयात पर आधारित,अर्थव्यवस्था
मुफ्त खोरी का, लग गया चस्का
ऊपर से भ्रष्टाचार, का बोलबाला
जनता के मुख से,छिना निवाला।

विकसित देशों में, लड़ाई छिड़ी है
अफरातफरी, मची पड़ी है।।

दसियों साल, आतंकवाद ने मारा
मित्र देशों ने भी, किया किनारा
कृषि, उद्योग, सब चौपट हो गये
पर्यटकों का भी, न रहा सहारा ।
संकट में देश की, जान पड़ी है
अफरातफरी, मची पड़ी है ।।

दो करोड़ से ज्यादा, जनसंख्या है
मंहगाई से, हाल बुरा है
खाद्यान्न की भी, कमी है भारी
मुसीबत में फंसी है,जनता बेचारी।

करेंसी पर आफत, आन पड़ी है
अफरातफरी, मची पड़ी है ।।

विदेशों पर निर्भरता, पड़ेगी भारी
देसी उत्पादन में, करो वृद्धि भारी
फिजूलखर्ची पर, रोक लगाइए
मुफ्त चीजें बांटने से, बाज आइए।

शासक दलों की,जिम्मेदारी बड़ी है
अफरातफरी, मची पड़ी है ।।

जनता सड़कों पर लाचार खड़ी है
अफरातफरी मची पड़ी है ।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई