शमा बेशक जलाई जाती हो
शमा बेशक जलाई जाती हो महफ़िल में रौशनी के लिए
मगर वजह यह ही बन जाती है परवानों को जलाने के लिए
वक़्त बेशक भर देता हो ज़िन्दगी में मिले ज़ख़्मों को
मगर दाग़ तो रह ही जाते हैं दुनिया के देखने के लिए
कलियाँ बेशक बुहत ही खिलती हैं ज़िन्दगी के गुलशन में
और सब फूल ही तो बन जाती हैं सिर्फ़ मुर्झाने के लिए
ख़ुशबू के फैलने का कोई वास्ता ही नहीं है फूलों से
ख़ुशबू तो फैलती है सिर्फ़ फ़ज़ाओं को महकाने के लिए
ख़्वाब बेशक आते हों आपको रातों मे बार बार
मगर ख़्वाब आते नहीं आपकी नीन्दों को सजाने के लिए
तल्ख़ यादें ज़िन्दगी की कुछ ऐसे बस जाती हैं ज़हन में
मिटती नहीं कोशिश तो बहुत करते हैं हम इनको भुलाने के लिए
मायूस बुहत ही हो गए हैं हम अब तो दर्द के इस अहसास से
आरज़ूएं अब तो बाक़ी नही हैं कोई फिर से दिल लगाने के लिए
बुहत ही कठिन हो गया है अब तो सफ़र इस ज़िन्दगी का
कोशिश तो बहुत करते हैं मगर तैयार ही नहीं वापस जीने के लिए
दिल हमारा पागल है और बुहत ही नादान हो गया है मदन
आ गया है आप पर ही और अब तैयार है मर जाने के लिए
मुहब्बत हमारी भी तो एक राज़ है हम दोनों के बीच में
तैयार हम भी नही हैं इस दुनिया में किसी को कुछ बताने के लिए
— मदन लाल